________________ लगे हुए, पक्केल्लयं वा अथवा पके हुए, कोलालभंडं बर्तनों को, अवहरइ वा—नहीं चुराता, जाव परिट्ठवेइ वा यावत् नहीं फेंकता, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं—अथवा अग्निमित्रा भार्या के साथ, विउलाई भोग-भोगाइं भुञ्जमाणे विहरइ–विपुल भोग भोगता हुआ नहीं विचरता है, नो वा तुम तं पुरिसं—न ही तुम उस पुरुष को, आओसेज्जसि वा—फटकारते हो, हणेज्जसि वा—मार-पीट करते हो, जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जसि—यावत् प्राणापहरण करते हो, जइ यदि, नत्थि उठाणे इ वा–उत्थान नहीं है, जाव परक्कमे इ वा-यावत् पराक्रम नहीं है, नियया सव्वभावा—और सब भाव नियत हैं, अह णं केइ पुरिसे—यदि कोई पुरुष, तुब्भं वायाहयं जाव परिट्ठवेइ वा तेरे हवा लगे हुए बर्तनों को चुराता है यावत् बाहर फेंकता है, अग्गिमित्ताए वा जाव विहरइ—यावत् अग्निमित्रा भार्या के साथ विहार करता है, तुमं ता तं पुरिसं—और तुम उस पुरुष को आओसेसि वा—फटकारते हो, जाव ववरोवेसि—यावत् प्राण लेते हो, तो जं वदसि तो फिर भी यह कहते हो कि, नत्थि उट्ठाणे इ वा–उत्थान नहीं है, जाव नियया सव्वभावा—यावत् सब भाव नियत हैं, तं ते मिच्छा तेरा यह कहना मिथ्या है। एत्थ णं इस पर, से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्धे—वह आजीविकोपासक सद्दालपुत्र समझ गया अर्थात् उसे बोध हो गया। भावार्थ श्रमण भगवान् महावीर ने आजीविकोपासक सद्दालपुत्र से पूछा- "हे सद्दालपुत्र! यदि कोई पुरुष हवा लगे हुए अथवा पके हुए तेरे बर्तनों को चुरा ले, कहीं बाहर ले जाकर रख दे और तुम्हारी अग्निमित्रा भार्या के साथ काम-भोग सेवन करे तो तुम उसे क्या दण्ड दोगे?" सद्दालपुत्र-“भदन्त! मैं उस पुरुष को गालियां दूंगा, फटकारूंगा, पीलूंगा, बांध दूंगा, पैरों तले कुचल दूंगा, धिक्कारूंगा, ताड़ना करूंगा, नोंच डालूंगा, भला-बुरा कहूंगा, अथवा उसके प्राण ले लूंगा।" भगवान् ने कहा- "हे सद्दालपुत्र! तुम्हारी मान्यता के अनुसार न तो कोई पुरुष बर्तनों को चुराता है, और न अग्निमित्रा भार्या के साथ दुराचार करता है। न ही तुम उस पुरुष को दण्ड देते हो या मारते हो। क्योंकि उत्थान यावत् पुरुषकार तो हैं ही नहीं—जो कुछ होता है अपने आप होता है, इसके विपरीत यदि कोई पुरुष तुम्हारे बर्तनों को वास्तव में चुराता है, या अग्निमित्रा भार्या के साथ दुराचार सेवन करता है और तुम उसे गाली-गलौच देते हो यावत् मारते हो तो तुम्हारा यह कथन मिथ्या है कि उत्थान यावत् पुरुषार्थ कुछ नहीं है, और सब भाव नियत हैं।' यह सुनकर आजीविकोपासक सद्दालपुत्र वास्तविकता को समझ गया / ____टीका–पिछले तथा इन सूत्रों में भगवान महावीर ने गोशालक के नियतिवाद का खण्डन करने के लिए युक्तियां दी हैं ! नियतिवाद का स्वरूप कुण्डकौलिक अध्ययन में बताया जा चुका है। देवता ने जब कुण्डकौलिक के सामने गोशालक के सिद्धान्त को समीचीन बताकर विश्व के समस्त परिवर्तनों को नियत बताया और कहा कि जीवन में प्रयत्न तथा पुरुषार्थ का कोई स्थान नहीं है तो कुण्डकौलिक श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 300 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन