________________ नमंसित्ता—वन्दना नमस्कार करके, एवं वयासी—इस प्रकार बोला—इच्छामि णं भंते! हे भगवन्! मैं चाहता हूं कि, तुब्भं अंतिए—आपके पास, धम्मं निसामेत्तए—धर्म सुनूं / भावार्थ आजीविकोपासक सद्दालपुत्र ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना नमस्कार किया और कहा- "हे भगवन्! मैं आपसे धर्म सुनना चाहता हूं। मूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य जाव धमं परिकहेइ // 203 // छाया–ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्य तस्यां च यावद्धर्म परिकथयति / शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे—श्रमण भगवान् महावीर ने, सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र को, तीसे य जाव धम्म परिकहेइ—उस महती परिषद् में यावत् धर्म सुनाया। भावार्थ इस पर श्रमण भगवान् महावीर ने आजीविकोपासक सद्दालपुत्र को महती परिषद में धर्मोपदेश किया। मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठ जाव हियए जहा आणंदो तहां गिहि-धमं पडिवज्जइ। नवरं एगा हिरण्ण-कोडी निहाण-पउत्ता, एगा हिरण्ण-कोडी वुड्डि-पउत्ता, एगा हिरण्ण-कोडी पवित्थर-पउत्ता, एगे वए दस गो-साहस्सिएणं वएणं जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव पोलासपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोलासपुरं नयरं मज्झं-मज्झेणं जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी–“एवं खलु देवाणुप्पिए! समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छाहि णं तुमं, समणं भगवं महावीरं वंदाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि' || 204 // छाया ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासक-श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्मं श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टो यावत् हृदयो यथाऽऽनन्दस्तथा गृहिधर्मं प्रतिपद्यते, नवरमेका हिरण्यकोटिर्निधान-प्रयुक्ता, एका हिरण्यकोटिवृद्धि-प्रयुक्ता, एका हिरण्यकोटिः प्रविस्तर-प्रयुक्ता, एको व्रजो दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन यावत् श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 302 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन