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________________ भावार्थ भगवान् ने फिर पूछा—“सद्दालपुत्र! यह बर्तन उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम से बने हैं अथवा उनके बिना ही बने हैं ?" मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी—"भंते! अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार-परक्कमेणं, नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा" || 166 // छाया ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकः श्रमणं भगवन्तं महावीरमेवमवादीत्–“भदन्त! अनुत्थानेन यावदपुरुषकारपराक्रमेण, नास्त्युत्थानमिति वा यावत्पराक्रमइति वा, नियताः सर्वभावाः।" शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए—वह आजीविकोपासक सद्दालपुत्र, समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीर को, एवं वयासी इस प्रकार बोला—भंते! हे भगवन् ! अणुट्ठाणेणं उत्थान, जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं यावत् पुरुषकार-पराक्रम के बिना बनते हैं, नत्थि उट्ठाणे इ वा उत्थान नहीं, जाव परक्कमे इ वा-यावत् पराक्रम भी नहीं है, नियया सव्वभावा—सब भाव नियत हैं। भावार्थ सद्दालपुत्र ने उत्तर दिया-"भगवन्! यह सब बर्तन उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम के बिना ही बने हैं। उत्थान आदि का कोई अर्थ नहीं है। समस्त परिवर्तन नियत हैं।" मूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी “सद्दालपुत्ता! जइ णं तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलाल-भंड अवहरेज्जा वा विक्खिरेज्जा वा भिंदेज्जा वा अच्छिंदेज्जा वा परिट्ठवेज्जा वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोग-भोगाइं भुजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स किं दंडं वत्तेज्जासि?" (सद्दाल०) "भंते! अहं णं तं पुरिसं आओसेज्जा वा हणेज्जा वा बन्धेज्जा वा महेज्जा वा तज्जेज्जा वा तालेज्जा वा निच्छोडेज्जा वा निब्भच्छेज्जा वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जा वा / " (भगवानुवाच) “सद्दालपुत्ता! नो खलु तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलाल-भंडं अवहरइ वा जाव परिट्ठवेइ वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोग-भोगाइं भुजमाणे विहरइ, नो वा तुमं तं पुरिसं आओसेज्जसि वा हणेज्जसि वा जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जसि, जइ नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा नियया सव्वभावा। अह णं तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं जाव परिट्ठवेइ वा अग्गिमित्ताए वा श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 268 | सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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