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________________ भावार्थ 'यह देखकर भगवान महावीर ने सद्दालपुत्र से पूछा- “यह बर्तन कैसे बने?" मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी - "एस णं भंते! पुव्विं मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं निमिज्जइ, निमिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगओ मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरोहिज्जइ, तओ बहवे करगा य जाव उट्टियाओ य कज्जंति // 167 // छाया ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकः श्रमणं भगवन्तं महावीरमेवमवादीत्—“एष खलु भदन्त! पूर्वं मृत्तिकाऽऽसीत् ततः पश्चादुदकेन निमज्जयते, निमज्ज्य क्षारेण च करीषेण चैकतो मिश्यते मिश्रयित्वा चक्रे आरोप्यते, ततो बहवः करकाश्च यावदुष्ट्रिकाश्च क्रियन्ते / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए—वह आजीविकोपासक सद्दालपुत्र, समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीर को, एवं वयासी—इस प्रकार बोला—एस णं भंते! हे भगवन्! यह, पुट्विं मट्टिया आसी—पहले मिट्टी थी, तओ पच्छा तत्पश्चात्, उदएणं निमिज्जइ इन्हें पानी में भिगोया गया, निमिज्जित्ता भिगो कर, छारेण य करिसेण य–क्षार और करीष के साथ, एगओ मीसिज्जइ एकत्र मिलाया गया, मीसिज्जित्ता मिलाकर, चक्के आरोहिज्जइ–चाक पर चढ़ाया, तओ बहवे करगा य—तब बहुत से करक, जाव उट्टियाओ य कज्जंति यावत् उष्ट्रिकाएं बनाई जाती हैं। भावार्थ सद्दालपुत्र ने उत्तर दिया-“भगवन्! सर्व प्रथम मिट्टी लाई गई, उसे पानी में भिगोया * गया। तत्पश्चात् क्षारतत्व और गोबर के साथ मिलाकर चाक पर चढ़ाया गया। तब यह बर्तन बने / " मूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी“सद्दालपुत्ता! एस णं कोलाल-भंडे किं उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जंति उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जति?" || 168 // . छाया ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रमाजीविकोपासक-मेवमवादीत्"सद्दालपुत्र ! एतत् खलु कौलाल-भाण्डं किमुत्थानेन यावत् पुरुषकार-पराक्रमेण क्रियते उताहो! अनुत्थानेन यावत् पुरुषकार-पराक्रमेण क्रियते?" शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान् महावीर ने, सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र से, एवं वयासी—यह पूछा—सद्दालपुत्ता! हे सद्दालपुत्र! एस णं कोलाल-भंडे—यह मिट्टी के बर्तन, किं उट्ठाणेणं उत्थान से, जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जंति यावत् पुरुषकार-पराक्रम से बनाए जाते हैं, उदाहु-अथवा, अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार-परक्कमेणं बिना उत्थान यावत् पुरुषार्थ-पराक्रम से, कज्जंति बनाए जाते हैं? श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 267 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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