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________________ छाया ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्यैतमर्थं प्रतिशृणोति, प्रतिश्रुत्य सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्य पञ्चसु कुम्भकारापणशतेषु प्रासुकैषणीयं प्रातिहारिकं पीठ-फलक शय्या संस्तारकमवगृह्य विहरति / ____ शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर ने, सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की, एयमटुं पडिसुणेइ इस विनती को स्वीकार किया, पडिसुणेत्ता स्वीकार करके, सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की, पंचकुम्भकारावणसएसु–पांच सौ आपणों से, फासुएसणिज्जं—प्रासुक और एषणीय, पाडिहारियं—प्रातिहारिक, पीढफलगसिज्जासंथारयं—पीठ-फलक, शय्या संस्तारक, ओगिण्हित्ता णं विहरइ-ग्रहण करके विचरने लगे। भावार्थ तब श्रमण भगवान् महावीर ने आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की इस प्रार्थना को स्वीकार किया और सद्दालपुत्र की पांच सौ दुकानों से प्रासुक, एषणीय और प्रातिहारिक पीठ-फलक, शय्या-संस्तारक ग्रहण करके विचरने लगे। ____ मूलम्—तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ वायाहययं कोलालभंडं अंतो सालाहिंतो बहिया नीणेइ, नीणित्ता, आयवंसि दलयइ // 165 // छायाततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकोऽन्यदा कदाचित् वाताहतकं कौलालभाण्डमन्तः शालाया बहिर्नयति, नीत्वाऽऽतपे ददाति। . शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए—वह आजीविकोपासक सद्दालपुत्र, अन्नया कयाइ–एक दिन, वायाहययं कोलाल-भंडं—कुम्हार द्वारा बनाए जाने वाले हवा से शुष्क मिट्टी के बर्तनों को, अंतो सालाहिंतो बहिया नीणेइ–अन्दर के कोठे से बाहर लाया, नीणित्ता लाकर आयवंसि दलयइ-धूप में रखने लगा। भावार्थ एक दिन आजीविकोपासक सद्दालपुत्र हवा से कुछ सूखे हुए बर्तनों को अन्दर के कोठे से बाहर लाकर धूप में सुखाने लगा। मूलम् तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी“सद्दालपुत्ता! एस णं कोलालभंडे कओ?" || 166 // छाया ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रमाजीविकोपासकमेवमवादीत्-“सद्दालपुत्र! एष खलु कौलालभाण्डः कुतः?" शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर ने, सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र को, वयं वयासी इस प्रकार पूछा—सद्दालपुत्ता! ___ हे सद्दालपुत्र! एस णं कोलालभंडे कओ—यह मिट्टी के बर्तन कहां से आए अर्थात् कैसे बने? श्री उपासक दशां / / 266 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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