________________ छाया- “सद्दालपुत्र'! इति श्रमणो भगवान् महावीरः सद्दालपुत्रमाजीविकोपासकमेवमवादीत्-"तन्नूनं सद्दालपुत्र! कल्ये त्वं पूर्वापराह्नकालसमये येनैवाऽशोकवनिका यावद् विहरसि / ततः खलु तवैको देवोऽन्तिके प्रादुरासीत् / ततः खलु स देवोऽन्तरिक्षप्रतिपन्न एवमवादीत्- "हंभोः सद्दालपुत्र'! तदेव सर्वं यावत् पर्युपासिष्ये", तन्नूनं सद्दालपुत्र! अर्थः समर्थः?" "हन्तास्ति' | नो खलु सद्दालपुत्र! तेन देवेन गोशालं मंखलिपुत्रं प्रणिधायैवमुक्तम् / " शब्दार्थ-“सद्दालपुत्ता'! हे सद्दालपुत्र, इ समणे भगवं महावीरे—इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने, सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी—आजीविकोपासक सद्दालपुत्र को इस प्रकार कहा–से नूणं सद्दालपुत्ता निश्चय ही हे सद्दालपुत्र!, कल्लं तुमं पुव्वावरण्हकालसमयंसि—तुम कल दोपहर के समय, जेणेव असोग-वणिया जाव विहरसि–जहां अशोक-वनिका में बैठे थे, तए णं तब, एगे देवे—एक देव, तुब्भं अंतियं पाउब्भवित्था—तुम्हारे पास प्रकट हुआ, तए णं तब, से देवे—उस देव ने, अंतलिक्ख पडिवन्ने एवं वयासी—आकाश में स्थित होकर यह कहा—हं भो सद्दालपुत्ता! हे सद्दालपुत्र!, तं चेव सव्वं पूर्वोक्त सारा वृत्तान्त उसी प्रकार कह सुनाया, जाव पज्जुवासिस्सामि— यावत् पर्युपासना करूंगा, से नूणं सद्दालपुत्ता! —निश्चय ही हे सद्दालपुत्र! अढे समठे—क्या यह बात ठीक है? हंता! अत्थि—हां भगवन्!, ठीक है, नो खलु सद्दालपुत्ता! तेणं देवेणं गोसालं मंखलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते—उस देव ने मङ्खलिपुत्र गोशालक को लक्ष्य करके ऐसा नहीं कहा था। भावार्थ इस प्रकार भगवान महावीर ने सद्दालपुत्र को सम्बोधित करते हुए कहा, हे सद्दालपुत्र ! तुम जब अशोकवनिका में थे, एक देव तुम्हारे पास आया और उसने बताया कि इस प्रकार अरिहंत केवली आएंगे। भगवान ने सद्दालपुत्र के द्वारा पर्युपासना सम्बन्धी निश्चय तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया और अन्त में पूछा क्या यह बात ठीक है?" हां भगवन्–ठीक है, सद्दालपुत्र ने उत्तर दिया। भगवान् ने फिर कहा- “सद्दालपुत्र! देव ने यह बात गोशालक को लक्ष्य करके नहीं कही थी।" __मूलम् तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए ४–“एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पन्न-णाण-दंसणधरे, जाव तच्च-कम्म-संपया-संपउत्ते / तं सेयं खलु ममं समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता पाडिहारिएणं पीढ-फलग जाव उवनिमंतित्तए।" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता उट्ठाए उढेइ, उठ्ठित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–“एवं खलु भंते! मम पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पंच कुम्भकारावणसया। तत्थ णं तुब्भे पाडिहारियं पीढ जाव संथारयं ओगिण्हित्ता णं विहरह' // 163 // छाया-ततः खलु तस्य सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्य श्रमणेन भगवता महावीरेणैवमुक्तस्य सतोऽयमेतद्रूप आध्यात्मिकः ४-“एष खलु श्रमणो भगवान् महावीरो महामाहन उत्पन्न-ज्ञान-दर्शनधरो श्री उपासक दशांग म् / 264 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन