________________ ज्ञान और दर्शन के धारक, तीयपडुप्पन्नमणागयजाणए अतीत, वर्तमान और अनागत के जानने वाले, अरहा—अरिहन्त, जिणे जिन, केवली केवली, सव्वण्णू सर्वज्ञ, सव्वदरिसी-सर्वदर्शी, तेलोक्क वहिय-महिय-पूइए तीनों लोकों के द्वारा ध्यात, महित तथा पूजित, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे–देव, मनुष्य तथा असुरों के अर्चनीय, वंदणिज्जे-वंदनीय, सक्कारणिज्जेसत्कार करने योग्य, सम्माणणिज्जे सम्माननीय, कल्लाणं—कल्याण स्वरूप, मंगलं मंगल स्वरूप, देवयं देव स्वरूप, चेइयं ज्ञान-स्वरूप, जाव—यावत्, पज्जुवासणिज्जे–पर्युपासना करने योग्य, तच्चकम्म संपया संपउत्ते–तथ्य कर्मरूप संपत्ति से युक्त, तं णं—उनकी, तुमं वंदेज्जाहि-तुम वन्दना करना, जाव पज्जुवासेज्जाहि—यावत् पर्युपासना करना, पाडिहारिएणं—प्रातिहारिक ऐसी वस्तुएं जिन्हें साधु काम में लेकर वापिस कर देते हैं, पीढ फलग सिज्जा-संथारएणं उवनिमंतेज्जाहि—पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक के लिए निमन्त्रित करना, दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयइ इसी प्रकार दूसरी और तीसरी बार कहा, वइत्ता—कह कर, जामेव दिसं पाउब्भूए—जिस दिशा से प्रकट हुआ था, तामेव दिसं पडिगए—उसी दिशा में चला गया। भावार्थ—वह देव जो धुंघरू वाले वस्त्र पहने हुए था, आकाश स्थित होकर सद्दालपुत्र से कहने लगा—'हे देवानुप्रिय! कल यहां महामाहन, अप्रितहत ज्ञान, दर्शन के धारक, अतीत, वर्तमान और भविष्य को जानने वाले अरिहंत, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, जिनका तीनों लोक ध्यान, स्तुति तथा पूजन करते हैं। देव, मनुष्य तथा अंसुरों के अर्चनीय, वंदनीय, सत्कारणीय तथा सम्माननीय, कल्याणस्वरूप, मंगल स्वरूप, देवता स्वरूप और ज्ञान स्वरूप यावत् पर्युपासनीय तथा तथ्य-कर्म सम्पत्ति के स्वामी कल यहां आएंगे। तुम उन्हें वन्दना यावत् पर्युपासना करना। उन्हें प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक आदि के लिए निमन्त्रित करना / " दूसरी और तीसरी बार भी उसने इसी प्रकार कहा और जिस दिशा से आया था उसी दिशा में चला गया। ____.टीका—एक दिन सद्दालपुत्र अपनी अशोक-वनिका में गोशालक के कथनानुसार धर्मानुष्ठान कर रहा था। दोपहर के समय उसके पास एक देव प्रकट हुआ। उसने सूचना दी कि कल यहां सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अरिहन्त, जिन, केवली आएंगे। साथ ही सद्दालपुत्र से अनुरोध किया तुम भगवान को वन्दना नमस्कार करने के लिए जाना। उनकी उपासना करना, उन्हें पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि के लिए निमन्त्रित करना। देव ने जिन विशेषणों का प्रयोग किया है वे श्रमण महावीर के लिए हैं। उसका लक्ष्य भगवान महावीर की ओर था। ___ वे विशेषण इस बात को प्रकट करते हैं कि उन दिनों धर्माचार्यों में किस प्रकार के गुणों की अपेक्षा की जाती थी। वे विशेषण इस प्रकार हैं 1. 'महामाहणे' ति—जैन आगमों में भगवान महावीर के 'महामाहन', 'महामुणी' आदि श्री उपासक द / 287 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन