SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में सञ्चित थे, एक करोड़ व्यापार में तथा एक करोड़ गृह तथा उपकरणों में लगे हुए थे। दस हजार गायों वाला एक व्रम था। इसके अतिरिक्त पोलासपुर नगर से बाहर 500 आपण थे, जहां सैकड़ों व्यक्ति बर्तन बनाते थे, और सैंकड़ों नगर के चौराहों पर बेचा करते थे। इन व्यक्तियों को तीन प्रकार से पारिश्रमिक मिलता था। किसी को दैनिक मजदूरी, किसी को भोजन और किसी को मासिक या साप्ताहिक वेतन मिलता था। शास्त्रकार ने मिट्टी के बर्तनों का विस्तृत वर्णन किया है। उससे पता चलता है कि उन दिनों इस प्रकार के बर्तन बना करते थे। वर्णन में नीचे लिखे प्रकार दिए गए हैं 1. करए—(करक) पानी ठण्डा रखने के लिए काम में आने वाला घड़ा। 2. वारए (वारक) गुल्लक / 3. पिहडए—(पिठर) चपटे पेंदे वाली मिट्टी की परात या कठौती जिसे दुकानदार दही जमाने के काम में लेते हैं। 4. घडए—(घट) कुआ, तालाब, नदी आदि से पानी भरने के काम में आने वाला मटका / 5. अद्धघडए—(अर्धघटक) छोटा मटका / 6. जम्बूलए (जाम्बूनद) सुराही / / ____7. उट्टियाए—(उष्ट्रिका) लम्बी गर्दन और बड़े पेट वाले मटके जो तेल, घी आदि भरने के काम आते हैं। मूलम् तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ पुव्वावरण्ह-कालसमयंसि जेणेव असोग-वणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स अंतियं धम्म-पण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ // 185 // छाया ततः खलु स सद्दालपुत्र आजीविकोपासकोऽन्यदा कदाचित् पूर्वापराह्न-कालसमये येनैवाऽशोकवनिका तेनैवोपागच्छति, उपागत्य गोशालस्य मंखलि-पुत्रस्याऽऽन्तिकी धर्म-प्रज्ञप्तिमुपसम्पद्य विहरति। शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए—वह आजीविकोपासक सद्दालपुत्र, अन्नया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि—एक दिन दोपहर के समय, जेणेव असोग-वणिया जहां अशोक-वनिका थी, तेणेव उवागच्छइ वहां आया, उवागच्छित्ता-आकर, गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स अंतियं गोशालक मंखलिपुत्र के पास से स्वीकृत, धम्मपण्णत्तिं—धर्म प्रज्ञप्ति को, उवसंपज्जित्ताणं विहरइ स्वीकार करके विचरने लगा। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 285 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy