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________________ मूलम् तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पंच कुम्भकारावण-सया होत्था / तत्थ णं बहवे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लिं बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्ध-घडए य कलसए य अलिंजरए य जम्बूलए य उट्टियाओ य करेंति / अन्ने य से बहवे पुरिसा दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा कल्लाकल्लिं तेहिं बहूहिं करएहि य जाव उट्टियाहि य राय-मग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति // 184 // छाया तस्य खलु सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्य पोलासपुरान्नगराद् बहिः पंचकुम्भकारापणशतान्यासन् / तत्र खलु बहवः पुरुषाः दत्त-भृति-भक्त वेतनाः, कल्याकल्यि बहून् करकांश्च, वारकांश्च, पिठरकांश्च घटकांश्चार्द्धघटकांश्च कलशांश्चालिजरांश्च, जम्बूलकांश्चोष्ट्रिकांश्च कुर्वन्ति / अन्ये च तस्य बहवः पुरुषाः दत्त-भृति-भक्ता-वेतनाः कल्याकल्यि तैर्बहुभिः करकैश्च यावदुष्ट्रिकाभिश्च राजमार्गे वृत्तिं कल्पयन्तो विहरन्ति / शब्दार्थ तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—उस आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की, पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया–पोसालपुर नगर के बाहर, पंच कुम्भकारावणसया होत्था—पांच सौ बर्तनों के आपण थे, तत्थ णं उनमें, बहवे पुरिसा—बहुत से पुरुष, दिण्ण-भइ-भत्त वेयणा—भृति-दैनिक मजदूरी, भक्त-भोजन और वेतन प्राप्त करके, कल्लाकल्लिं–प्रतिदिन प्रभात होते ही, बहवे—बहुत से, करए य—करक, जलघटी, वारए य–गुल्लक या मटकैने, पिहडए यस्थालियाँ या कुंडे, घडए य—घड़े, अद्धघडए य–अर्धघटक—बड़े कुंडे, कलसए य–कलश-बड़े घड़े, अलिंजरए य–अलिञ्जर—मट्ट, जम्बूलएय- जम्बूलक--सुराहियाँ, उट्टियाओ य—उष्ट्रिका—छोटे मुंह लम्बी गर्दन और बड़े पेट वाले बर्तन (कुप्पी) जिनमें तेलादि डाला जाता है।, करेंति—बनाते थे, अन्ने य से बहवे पुरिसा और बहुत से अन्य पुरुष, दिण्ण-भइ-भत्त-वेयणा—भृति, भक्त और वेतन प्राप्त करके, कल्लाकल्लिं–प्रतिदिन प्रातः, तेहिं बहूहिं करएहि य—उन करक, जल घटिकाओं, जाव—यावत्, उट्टियाहि य—उष्ट्रिकाओं को बेचकर, रायमग्गंसि—राजमार्ग पर बैठकर, वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति—आजीविका का उपार्जन करते थे। भावार्थ सद्दालपुत्र के पोलासपुर नगर के बाहर 500 आपण थे, जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों व्यक्ति प्रातः होते ही पहुंच जाते थे और दैनिक मजदूरी, भोजन तथा वेतन प्राप्त करके तरह-तरह के बर्तन बनाते थे। इसी प्रकार बहुत से पुरुष दैनिक मजदूरी तथा वेतन पर उन बर्तनों को नगर के चौराहों पर, मार्गों पर बेचते थे। और इस प्रकार आजीविका कमाते थे / टीका प्रस्तुत सूत्र में सद्दालपुत्र की सम्पत्ति का वर्णन है। उसके पास एक करोड़ सुवर्ण कोष श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 284 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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