________________ अस्थि-हड्डियों और मज्जा में समाया हुआ था, (वह कहता था), अयमाउसो हे आयुष्मन्!, आजीविय-समए अढे यह आजीविक सिद्धान्त ही अर्थ है, अयं परमठे यही परमार्थ है, सेसे अणढे शेष अर्थात् दूसरे सिद्धान्त अनर्थ हैं, त्ति इस प्रकार, आजीविय-समएणं—आजीविक सिद्धान्त के द्वारा, अप्पाणं भावेमाणे विहरइ--आत्मा को भावित करता हुआ विचर रहा था। भावार्थ पोलासपुर नगर में आजीविक मत का अनुयायी सद्दालपुत्र नामक कुम्भकार रहता था। उसने आजीविक सिद्धान्त को अच्छी तरह समझा हुआ था, स्वीकार किया था, प्रश्नोत्तर द्वारा स्पष्ट किया था, निश्चय किया था और सम्यक् जाना था। आजीविक सिद्धान्तों का पूर्णतया अनुराग उसकी अस्थि तथा मज्जा में प्रविष्ट हो चुका था। वह कहता था—हे आयुष्मन्! आजीविक सिद्धान्त ही अर्थ है। अन्य सिद्धान्त अनर्थ हैं। इस प्रकार आजीविक सिद्धान्त के द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ विचर रहा था। मूलम् तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्ण-कोडी निहाणपउत्ता, एक्का वुड्डि-पउत्ता, एक्का पवित्थरपउत्ता, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं // 182 // छाया तस्य खलु सद्दालपुत्रस्याऽऽजीविकोपासकस्यैका हिरण्यकोटिः निधानप्रयुक्ता, एका वृद्धि-प्रयुक्ता, एका प्रविस्तर-प्रयुक्ता, एको व्रजो दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन / . शब्दार्थ तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—उस आजीविकोपासक सद्दालपुत्र के पास, एक्का हिरण्ण कोडी—एक करोड़ सुवर्ण मुद्राएं, निहाण-पउत्ता–कोष में सञ्चित थीं, एक्का वुड्डि-पउत्ता—एक करोड़ व्यापार में लगे हुए थे, एक्का पवित्थर-पउत्ता—और एक करोड़ गृह और उपकरणों में लगे हुए थे, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं-दस हजार गायों का एक वज्र था। भावार्थ आजीविकोपासक सद्दालपुत्र के पास एक करोड़ सुवर्ण कोष में सञ्चित थे, एक करोड़ व्यापार से लगे हुए थे और एक करोड़ घर तथा सामान में। दस हजार गौओं वाला एक व्रज था। , मूलम् तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नामं भारिया होत्था // 183 // . छाया तस्य खलु सद्दालपुत्रस्य आजीविकोपासकस्याग्निमित्रा नाम भार्याऽऽसीत् / शब्दार्थ तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स—उस आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की, अग्गिमित्ता नामं भारिया होत्था—अग्निमित्रा नाम की पत्नी थी। भावार्थ उस आजीविकोपासक सद्दालपुत्र की अग्निमित्रा नाम की पत्नी थी। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 283 / सद्दालपुत्र उपासक, सप्तम अध्ययन