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________________ समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीर को, वंदइ नमसइ-वन्दना नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता—वन्दना नमस्कार करके, पसिणाइं पुच्छइ—प्रश्न पूछे, पुच्छित्ता—पूछकर, अट्ठमादियइ–अर्थ ग्रहण किया, अट्ठमादिइत्ता–अर्थ ग्रहण करके, जामेव दिसिं पाउब्भूए—जिस दिशा से आया था, तामेव दिसिं पडिगए—उसी दिशा में वापिस चला गया। सामी बहिया जणवय विहारं विहरइ–भगवान महावीर स्वामी भी अन्य जनपदों में प्रस्थान कर गए। भावार्थ कुण्डकौलिक श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार किया, प्रश्न पूछे, अर्थ ग्रहण किया और वापिस लौट गया। भगवान महावीर स्वामी भी देश-देशान्तरों में विहार करने लगे। उपसंहारमूलम् तए णं तस्स कुण्डकोलियस समणोवासयस्स बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वइक्कंताई / पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ (जहा कामदेवो तहा) जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ / एवं एक्कारस उवासग-पडिमाओ तहेव जाव सोहम्में कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंतं कानि। निक्खेवो॥ 176 // // सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं छठें कुण्डकोलियज्झयणं समत्त॥ छाया-ततः खलु तस्य कुण्डकौलिकस्य श्रमणोपासकस्य बहुभिः शील यावत् भावयतश्चतुर्दश संवत्सराणि व्यतिक्रान्तानि, पञ्चदशं संवत्सरमन्तरावर्त्तमानस्यान्यदा कदाचिद् यथा कामदेवस्तथा ज्येष्ठपुत्रं स्थापयित्वा तथा पौषधशालायां यावद्धर्मप्रज्ञप्तिमुसंपद्य विहरति। एवमेकादशोपासकप्रतिमास्तथैव यावत्सौधर्मे कल्पेऽरुणध्वजे विमाने यावदन्तं करिष्यति / निक्षेपः। || सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां षष्ठं कुण्डकौलिकमध्ययनं समाप्तम् // शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स—उस कुण्डकौलिक श्रमणोपासक को, बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स—बहुत से शील-व्रत आदि के पालन द्वारा आत्मा को भावित करते हुए, चोद्दस संवच्छराई वइक्कंताई–चौदह वर्ष व्यतीत हो गए, पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स—पन्द्रहवें वर्ष के बीच में, अन्नया कयाइ–एक दिन, जहा कामदेवो तहा—कामदेव की तरह, जेट्ठपुत्तं ठवेत्ता ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार देकर, तहा पोसहसालाए—उसी प्रकार पौषधशाला में, जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ-धर्म-प्रज्ञप्ति स्वीकार करके विचरने लगा, एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ—उसी प्रकार ग्यारह उपासक प्रतिमाएं अङ्गीकार की, तहेव जाव श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 280 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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