________________ सोहम्मे कप्पे यावत् सौधर्मकल्प के, अरुणज्झए विमाणे—अरुणध्वज विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ, जाव अंतं काहिइ—यावत् समस्त कर्मों का अन्त करेगा अर्थात् सिद्ध होगा। निक्खवो निक्षेप पूर्ववत है। ____ भावार्थ विविध प्रकार के शील एवं व्रतों के द्वारा आत्म-विकास करते हुए कुण्डकौलिक को चौदह वर्ष बीत गए। पन्द्रहवें वर्ष में उसने कामदेव के समान घर का भार ज्येष्ठ पुत्र को सौंप दिया और स्वयं पौषधशाला में रहकर भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्म-प्रज्ञप्ति का अनुष्ठान करने लगा। क्रमशः ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार की और मरकर सौधर्म-कल्प के अरुणध्वज नामक विमान में उत्पन्न हुआ। वहां से च्यव कर वह भी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और कर्मों का अन्त करेगा। || सप्तम अङ्ग उपासकदशा-सूत्र का छठा कुण्डकौलिक अध्ययन समाप्त || | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 281 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /