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________________ 1. कुण्डकौलिक श्रावक था फिर भी भगवान ने उसकी प्रशंसा की और निर्ग्रन्थ तथा निर्ग्रन्थिनियों के सामने उसे उदाहरण के रूप में उपस्थित किया। इससे यह सिद्ध होता है कि साधु के लिए गृहस्थ की प्रशंसा करना वर्जित नहीं है। सद्गुण कहीं भी हो उसकी प्रशंसा करना महानता का लक्षण है। इससे चित्त शुद्धि होती है। ___ सूत्र में अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण और व्याकरण पांच शब्द आए हैं। इनका उन दिनों शास्त्रार्थ में उपयोग होता था। इसका अर्थ नीचे लिखे अनुसार है 2. अर्थ—पदार्थ अर्थात् अपने सिद्धान्त में प्रतिपादित जीव, अजीव आदि वस्तुएं अथवा प्रमाण रूप में उद्धृत आगम पाठ का अर्थ / न्यायदर्शन में प्रतिवादी दो प्रकार के बताए गए हैं—(क) समान तन्त्र अर्थात् आगम के रूप में उन्हीं ग्रन्थों को मानने वाले जिन्हें वादी मानता है अथवा एक ही परम्परा के अनुयायी। (ख) प्रतितन्त्र अर्थात् वादी से भिन्न परम्परा वाले, भिन्न आगमों को प्रमाण मानने वाले। समान तन्त्र के साथ शास्त्रार्थ करते समय प्रायः मूल पाठ का अर्थ किया जाता है और प्रतितन्त्र के साथ शास्त्रार्थ करते समय अपने सिद्धान्तों में प्रतिपादित वस्तुओं का निरूपण किया जाता 3. हेतु—वह वस्तु जिसके आधार पर लक्ष्य या साध्य को सिद्ध किया जाए। जैसे धुएं के आधार पर अग्नि का अस्तित्व सिद्ध करना, क्योंकि धुआं अग्नि के बिना नहीं होता। ___4. प्रश्न—इसका अर्थ है—प्रतिवादी से विविध प्रकार के प्रश्न पूछना जिससे वह अपनी मिथ्या धारणा को छोड़ दे, इसे शास्त्रार्थ में विश्लेषणात्मक पद्धति (Analytic approach) कहते हैं। 5. कारण—युक्तियों द्वारा पक्ष का उपपादन / 6. व्याकरण-प्रतिवादी द्वारा पूछे गए प्रश्न की व्याख्या या खुलासा / - कुण्डकौलिक का प्रत्यागमनमूलम् तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठमादियइ, अट्ठमादिइत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए / सामी बहिया जणवय विहारं विहरइ // 178 // - छाया ततः खलु कुण्डकौलिकः श्रमणोपासकः श्रमणं भगवंतं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य प्रश्नान् पृच्छति, घृष्ट्वाऽर्थमाददाति, अर्थमादाय यस्याः एव दिशः प्रादुर्भूतस्तामेव दिशं प्रतिगतः / स्वामी बहिर्जनपद विहारं विहरति / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कुण्डकोलिए समणोवासए—उस कुण्डकौलिक श्रमणोपासक ने, | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 276 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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