________________ शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से देवे—वह देव, कुण्डकोलिएणं समणोवासएणं कुण्डकौलिक श्रमणोपासक द्वारा, एवं वुत्ते समाणे—इस प्रकार कहे जाने पर, संकिए—शङ्कित हो गया, जाव—यावत्, कलुससमावन्ने कलुष (हतप्रभ) हो गया, कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्सकुण्डकौलिक श्रमणोपासक को, किंचि—कुछ भी, पामोक्खमाइक्खित्तए—उत्तर में नहीं कह सका, नाम-मुद्दयं च उत्तरिज्जयं च—उसने नाम मुद्रा और उत्तरीय वस्त्र को, पुढवि-सिला-पट्टए ठवेइ—पृथ्वी-शिलापट्ट पर रख दिया, ठवित्ता—रखकर, जामेव दिसिं पाउब्भूए—जिस दिशा से प्रकट हुआ था, तामेव दिसिं पडिगए—उसी दिशा को चला गया। भावार्थ कुण्डकौलिक के इस प्रकार कहने पर देव के. मन में शङ्का उत्पन्न हो गई यावत् वह हतप्रभ हो गया और कुण्डकौलिक श्रमणोपासक को कुछ भी उत्तर न दे सका। तब नाम मुद्रिका और उत्तरीय-वस्त्र को पृथ्वी-शिला-पट्ट पर रखकर जिधर से आया था उधर चला गया। भगवान् महावीर का आगमनमूलम् तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे // 174 // छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये स्वामी समवसृतः। शब्दार्थ तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल और उस समय, सामी समोसढे—भगवान् महावीर स्वामी समवसृत हुए। भावार्थ उस काल और उस समय भगवान् महावीर स्वामी पधारे। , .. कुण्डकौलिक का दर्शनार्थ जाना— मूलम् तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए इमीसे कहाए लद्धढे हट्ठ जहा कामदेवो तहा, निग्गच्छइ, जाव पज्जुवासइ, धम्मकहा // 175 // , छाया ततः खलु स कुण्डकौलिकः श्रमणोपासकोऽस्यां कथायां लब्धार्थः सन् हृष्टो यथा कामदेवस्तथा निर्गच्छति, यावत् पर्युपास्ते / धर्मकथाः। . शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कुण्डकोलिए समणोवासए वह कुण्डकौलिक श्रमणोपासक, इमीसे कहाए लद्ध?—इस समाचार को सुनकर, हट्ठ–प्रसन्न हुआ, जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ—कामदेव की तरह दर्शनार्थ निकला, जाव पज्जुवासइ–यावत् पर्युपासना की, धम्मकहा—भगवान् का धर्म उपदेश हुआ। भावार्थ कुण्डकौलिक भी भगवान् के आने की बात सुनकर प्रसन्न हुआ और कामदेव के समान दर्शनार्थ गया, भगवान् की पर्युपासना की। भगवान् का धर्मोपदेश हुआ। श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 276 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /