________________ लद्धे कैसे मिला? किणा पत्ते कैसे प्राप्त हुआ? किणा अभिसमन्नागए कैसे समन्वागत हुआ, किं उट्ठाणेणं क्या उत्थान से, जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं यावत् पुरुषकार-पराक्रम से, उदाहुअथवा, अणुट्ठाणेणं बिना उत्थान, अकम्मेणं जाव अपुरिसक्कार परक्कमेणं-बिना कर्म से यावत् बिना पुरुषकार और पराक्रम के प्राप्त हुआ ? भावार्थ-कुण्डकौलिक ने उत्तर दिया, हे देव!" यदि मंखलिपुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति समीचीन है क्योंकि उसमें उत्थान नहीं है, यावत् सब पदार्थ नियत हैं और श्रमण भगवान महावीर की धर्म-प्रज्ञप्ति समीचीन नहीं है क्योंकि उसमें उत्थान है यावत् समस्त पदार्थ अनियत हैं तो हे देव! तुम्हें यह दिव्य-अलौकिक देव ऋद्धि, अलौकिक कान्ति, अलौकिक अनुभाव कहां से मिला ? कैसे प्राप्त हुआ ? और कैसे समन्वागत हुआ? क्या यह उत्थान यावत् पराक्रम अथवा पुरुषकार से प्राप्त हुआ ? या उनके बिना ?" मूलम्—तए णं से देवे कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी “एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमेयारूवा दिव्या देविड्ढी 3 अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा, पत्ता, अभिसमन्नागया" || 171 // छाया ततः खलु स देवः कुण्डकौलिकं श्रमणोपासकमेवमवादीत्—“एवं खलु देवानुप्रिय! मयैतद्रूपा दिव्या देवर्द्धिः 3 अनुत्थानेन यावद् अपुरुषकारपराक्रमेण लब्धा, प्राप्ता, अभिसमन्वागता। शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से देवे—उस देव ने, कुण्डकोलियं समणोवासयं—उस कुण्डकौलिकं श्रमणोपासक को, एवं वयासी—इस प्रकार कहा—एवं खलु देवाणुप्पिया! हे देवानुप्रिय! मए मुझे, इमेयारूवा इस प्रकार की, दिव्वा देविड्डी–अलौकिक देव-ऋद्धि, अणुट्ठाणेणं-बिना उत्थान, जाव अपुरिसक्कार-परक्कमेणं यावत् बिना पुरुषकार और पराक्रम के, लद्धा मिली है, पत्ता प्राप्त हुई है, अभिसमन्नागया—पास आई है। . भावार्थ तदनन्तर देव ने उत्तर दिया, हे देवानुप्रिय! “मुझे यह अलौकिक देव ऋद्धि बिना उत्थान, पुरुषकार-पराक्रम के मिली है।" मूलम् तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी–“जइ णं देवा! तुमे इमा एयारूवा दिव्या देविड्ढी 3 अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार-परक्कमेणं लद्धा, पत्ता, अभिसमन्नागया ? जेसिं णं जीवाणं नत्थि उट्ठाणेइ वा, परक्कमे इ वा, ते किं न देवा ? अह णं, देवा! तुमे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी 3 उट्ठाणेणं जाव परक्कमेणं लद्धा, पत्ता, अभिसमन्नागया, तो जं वदसि—सुन्दरी णं गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स धम्म-पण्णत्ती-नत्थि | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 273 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /