________________ "अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम | दास मलूका कह गए सब के दाता राम || संस्कृत साहित्य में भी इस प्रकार के अनेक श्लोक मिलते हैं, जो पुरुषार्थ को व्यर्थ बताते हैं "प्राप्तव्यो नियति बलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा / भूतानां महति कृतेऽपीह प्रयत्ने, नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः // " - पुरुषों को नियति अर्थात् होनहार के आधीन जो शुभ अथवा अशुभ प्राप्त करना होता है वह अवश्यमेव प्राप्त होता है अर्थात् जैसा भाग्य में लिखा है वह होकर ही रहता है। प्राणी कितना ही प्रयत्न करे, जो बात नियति में नहीं है, नहीं हो सकती। इसी प्रकार जो होनी है वह टल नहीं सकती। “नहि भवति यन्न भाव्यं, भवति च भाव्यं बिनाऽपि यलेन | करतलगतमपिं नश्यति, यस्य तु भवितव्यता नास्ति // " होनहार नहीं है वह कभी नहीं हो सकता और जो होनहार है वह बिना ही प्रयत्न के हो जाता है। जिसकी होनहार अथवा भाग्य समाप्त हो गया है उसकी हाथ में आई हुई संपत्ति भी नष्ट हो जाती इसके विपरीत महावीर की परंपरा में पुरुषार्थ के लिए पर्याप्त स्थान है। वहां यह माना है कि व्यक्ति पुरुषार्थ द्वारा अपने भविष्य को बदल सकता है। उसका बनाना या बिगाड़ना स्वयं उसके हाथ में है। पूर्व जन्म के सञ्चित कर्मों को भी इस जन्म के पुरुषार्थ द्वारा बदला जा सकता है। इसी आश्य का एक श्लोक योग-वशिष्ठ में भी आया है "द्वौ हुडाविव युद्ध्येते, पुरुषार्थों परस्परम् / प्राक्तनोऽद्यतनश्चैव, जयत्यधिकवीर्यवान् // " / - पुराना और नया पुरुषार्थ मेंढों की तरह आपस में टकराते रहते हैं, जिसमें अधिक शक्ति होती है वही जीत जाता है। इस विषय की विशेष चर्चा के लिए जैन कर्म-सिद्धान्त का मनन करना चाहिए। सूत्र में पुरुषार्थ का अभिप्राय प्रकट करने के लिए कई शब्द दिए हैं, उनका सूक्ष्म आशय नीचे लिखे अनुसार है 1. उत्थान किसी काम को करने के लिए उठना अर्थात् खड़े होना / मानसिक दृष्टि से इसका अर्थ है उत्साह। / . श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 271 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /