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________________ वाले उत्तरीय वस्त्र को रख दिया। तत्पश्चात् श्रमण भगवान से प्राप्त की हुई धर्म-प्रज्ञप्ति का आराधन करने लगा। देव का आगमन मूलम् तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था // 168 // छाया-ततः खलु तस्य कुण्डकौलिकस्य श्रमणोपासकस्यैको देवोऽन्तिके प्रादुरभूत् / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स—उस कुण्डकौलिक श्रमणोपासक के पास, एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था—एक देव प्रकट हुआ। ___ भावार्थ जिस समय कुण्डकौलिक श्रमणोपासक भगवान महावीर के धर्म की आराधना कर रहा था उस समय वहां पर एक देव प्रकट हुआ। देव द्वारा नियतिवाद की प्रशंसामूलम् तए णं से देवे नाममुदं च उत्तरिज्जं च पुढवि-सिला-पट्टयाओ गेण्हइ, गिण्हित्ता सखिंखिणिं अंतलिक्ख-पड़िवन्ने कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी-“हं भो कुण्डकोलिया! समणोवासया! सुन्दरी णं देवाणुप्पिया! गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स धम्म-पण्णत्ती, नत्थि उट्ठाणे इ वा, कम्मे इ वा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्म-पण्णत्ती, अत्थि उट्ठाणे इ वा, जाव परक्कमें इ वा, अणियया सव्वभावा" || 166 // छाया ततः खलु स देवो नाममुद्रां चोत्तरीयं च पृथिवी-शिला-पट्टकाद् गृह्णाति, गृहीत्वा सकिंकिणिकः अंतरिक्षप्रतिपन्नः कुण्डकौलिकं श्रमणोपासकमेवमवादीत्-"हं भोः कुण्डकौलिक! श्रमणोपासक! सुन्दरी खलु देवानुप्रिय! गोशालस्य मंखलि-पुत्रस्य धर्मप्रज्ञप्तिः नास्ति उत्थानमिति वा, कर्मेति वा, बलमिति वा, वीर्यमिति वा, पुरुषकार-पराक्रमौ इति वा, नियताः सर्वभावाः / मंगुली खलु श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य धर्मप्रज्ञप्तिः, अस्ति उत्थानमिति वा, यावत्पराक्रम इति वा अनियताः सर्वभावाः। शब्दार्थ तए णं से देवे तदनन्तर उस देव ने, नाममुदं च उत्तरिज्जं च-नाम-मुद्रिका और उत्तरीय को, पुढवि-सिला-पट्टयाओ गेण्हइ—पृथ्वी-शिला-पट्टक से उठाया, गिण्हित्ता उठाकर, सखिंखिणिं धुंघरु का शब्द करते हुए, अंतलिखपडिवन्ने—उडकर अन्तरिक्ष में रुक गया, कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी—कुण्डकौलिक श्रावक को इस प्रकार कहने लगा—हं भो श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 266 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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