________________ छटठमण्झयण / षष्ठम अध्ययन मूलम् उक्खेवओ छट्ठस्स कुण्डकोलियस्स अज्झयणस्स, एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कम्पिल्लपुरे नयरे, सहस्सम्बवणे उज्जाणे / जियसत्तू राया / कुण्डकोलिए गाहावई / पूसा भारिया / छ हिरण्ण-कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वुड्डि-पउत्ताओ छ पवित्थर-पउत्ताओ, छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं / सामी समोसढे, जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ। सच्चेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ॥१६६॥ ____ छाया—उत्क्षेपकः षष्ठस्य कुण्डकौलिकस्याध्ययनस्य, एवं खलु जम्बूः! तस्मिन् काले तस्मिन् समये काम्पिल्यपुरं नगरं सहस्राम्रवनमुद्यानम्, जितशत्रू राजा | कुण्डकौलिको गाथापतिः / पूषा भार्या षड् हिरण्यकोट्यो निधान-प्रयुक्ताः, षड् वृद्धि-प्रयुक्ताः, षड् प्रविस्तर-प्रयुक्ताः, षड् व्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन | स्वामी समवसृतः / यथा कामदेवस्तथा श्रावकधर्मं प्रतिपद्यते | सा चैव वक्तव्यता यावत् प्रतिलाभयन् विहरति / शब्दार्थ छट्ठस्स कुण्डकोलियस्सअज्झयणस्स—छठे कुण्डकौलिक अध्ययन का, उक्खेवओउपक्षेप अर्थात् आरम्भ इस प्रकार है—एवं खलु जम्बू! इस प्रकार हे शिष्य जम्बू!, तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस कालं उस समय में, कम्पिल्लपुरे नयरे—काम्पिल्यपुर नगर, सहस्सम्बवणे उज्जाणे—सहस्राम्रवन उद्यान था, जियसत्तू राया—जितशत्रु राजा, कुण्डकोलिए गाहावई और कुण्डकौलिक गाथापति था, पूसा भारिया–(उसकी) पूषा नामक पत्नी थी, छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ-छह करोड़ सुवर्ण मुद्राएं कोष में थीं, छ वुड्डिपउत्ताओ-छह करोड़ व्यापार में लगी हुई थीं और, छ पवित्थरपउत्ताओ छह गृह तथा उपकरण में लगी हुई थीं। छह वया दस-गोसाहस्सिएणं वएणं प्रत्येक व्रज में दस हजार गायों के हिसाब से छह व्रज अर्थात् पशु-धन था। सामी समोसढे भगवान् पधारे। जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ–कामदेव के समान उसने भी श्रावकधर्म अङ्गीकार किया। सच्चेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ सारी वक्तव्यता उसी प्रकार है यावत् श्रमण-निर्ग्रन्थों को भक्तपान प्रतिलाभ अर्थात् आहार-पानी आदि बहराता हुआ विचरने लगा। | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 267 / कुण्डकौलिक उपासक, षष्ठम अध्ययन /