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________________ परिशिष्ट और आदि-पर्यों में मिलता है। तित्थोगालीय का सारांश निम्नलिखित है भगवान महावीर के बाद सातवें पुरुष चौदह पूर्वधारी भद्रबाहु हुए, जिन्होंने बारह वर्ष तक योगमार्ग का अवलम्बन किया और सूत्रार्थ की निबन्धों के रूप में रचना की। उस समय मध्यप्रदेश में प्रबल अनावृष्टि हुई। इस कारण साधु दूर देशों में चले गए। कोई वेताढ्य पर्वत की गुफाओं में, कोई नदियों के तट पर और कोई समुद्र के तट पर जाकर संयमी जीवन बिताने लगे। संयम में दोष लगने से डरने वाले कुछ साधुओं ने अन्न-जल का परित्याग करके अन्तिम संलेखना व्रत ले लिया / बहुत वर्षों बाद जब दुर्भिक्ष समाप्त हुआ तो बचे हुए साधु फिर मगध देश में आ पहुंचे और चिरकाल के पश्चात् एक दूसरे को देखकर अपना नया जन्म मानने लगे। इसके बाद साधुओं ने परस्पर पूछ-ताछकर ग्यारह अङ्ग संकलित किए, पर दृष्टिवाद का जानने वाला कोई न मिला। वे कहने लगे—पूर्वश्रुत के बिना हम जिन-प्रवचन का सार कैसे समझ सकेंगे? हां, चौदह पूर्वो के ज्ञाता आर्य भद्रबाहु इस समय भी विद्यमान हैं। उनके पास से इस समय भी पूर्वश्रुत प्राप्त हो सकता है। परन्तु उन्होंने बारह वर्ष के लिए योग धारण कर रखा है, इसलिए वाचना देंगे या नहीं, यह संदेहास्पद है। इसके बाद श्रमण-संघ ने अपने दो प्रतिनिधि भेजे और भद्रबाहु से प्रार्थना की—“पूज्य क्षमाश्रमण! वर्तमान समय में आप जिन-तुल्य हैं। पाटलिपुत्र में “महावीर का संघ" आपसे प्रार्थना करता है कि आप श्रमण-संघ को पूर्वश्रुत की वाचना दें।" प्रार्थना का उत्तर देते हुए भद्रबाहु ने कहा—"श्रमणो ! मैं इस समय वाचना देने में असमर्थ हूं। आध्यात्मिक साधना में व्यस्त होने के कारण मझे वाचना से कोई प्रयोजन भी नहीं है।" भद्रबाहु के उत्तर से नाराज होकर स्थविरों ने कहा-"क्षमाश्रमण! इस प्रकार प्रयोजन का अभाव बताकर आप संघ की अवज्ञा कर रहे हैं। इस पर आपको क्या दण्ड मिलेगा, यह विचार कीजिए।" भद्रबाहु ने कहा—“मैं जानता हूं, इस प्रकार बोलने वाले का संघ बहिष्कार कर सकता है।" स्थविर बोले-"आप जानते हुए भी संघ की प्रार्थना का अनादर करते हैं? आप ही बताइए, हम आपको संघ के अन्दर कैसे रख सकते हैं? क्षमाश्रमण! हमने आपसे प्रार्थना की, किन्तु आप वाचना देने के लिए तैयार नहीं हुए। इसलिए आज से आप संघ से पृथक् कर दिए गए / बारह में से किसी प्रकार का व्यवहार आपके साथ नहीं रखा जाएगा।'' ___ भद्रबाहु यशस्वी पुरुष थे। अपयश से डरते थे। जल्दी सम्भल गए और बोले-"श्रमणो ! मैं एक शर्त पर वाचना दे सकता हूं। वह यह है कि वाचना लेने वाले मुझे न बुलावें और मैं उनको न बुलाऊं। यदि यह स्वीकार है तो कायोत्सर्ग का ध्यान पूरा होने के बाद, यथा-अवकाश मैं वाचना दे सकूँगा।" भद्रबाहु की शर्त को स्वीकार करते हुए स्थविरों ने कहा- "क्षमाश्रमण! जैसा आप कहेंगे और जैसी आपकी इच्छा है हम मानने को तैयार हैं।" श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 22 / प्रस्तावना
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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