________________ इसके बाद ग्रहण और धारण में समर्थ बुद्धिशाली 500 साधु विद्यार्थी के रूप में और प्रत्येक की सेवा-सुश्रूषा के लिए दो-दो साधु इस प्रकार 1500 साधु भद्रबाहु स्वामी के पास पहुंचे। वाचना की इच्छा से इतने साधु वहां पहुंच तो गए किन्तु कठिनाई में पड़ गए। भद्रबाहु ने वाचना का जो क्रम रखा उससे उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे वे विदा होने लगे और अन्त में केवल स्थूलभद्र रह गए। एक पद, आधा पद जो कुछ भी मिलता वे नम्रतापूर्वक सीख लेते, किन्तु हताश होकर छोड़ने को तैयार नहीं हुए। इस प्रकार रहते-रहते आठ वर्षों में स्थूलभद्र ने आठ पूर्वो का अध्ययन कर लिया। इसके बाद भद्रबाहु की योग साधना पूरी हो गई और उन्होंने सर्वप्रथम स्थूलभद्र से सम्भाषण करते हुए पूछा–“भद्र! तुम्हें भिक्षा और स्वाध्याय योग में किसी प्रकार का कष्ट तो नहीं है?'' स्थूलभद्र ने कहा-"मुझे कोई कष्टं नहीं है। मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। अब तक मैंने कितना सीख लिया और अभी कितना शेष है?" भद्रबाहु ने कहा- “अभी तक तुमने सरसों के दाने जितना सीखा है, और मेरु जितना शेष स्थूलभद्र तनिक भी विचलित या हतोत्साह नहीं हुए। फिर बोले-“भगवन्! मैं अध्ययन से थका नहीं हूं। मन में एक ही विचार आता है कि अपने इस अल्प जीवन में उस मेरु तुल्य श्रुतज्ञान को कैसे प्राप्त कर सकूँगा?" . स्थूलभद्र का विचार सुनकर स्थविर भद्रबाहु ने कहा- "स्थूलभद्र! अब तुम इस विषय की चिन्ता मत करो। मेरा ध्यान पूर्ण हो गया है और तुम बुद्धिमान हो। मैं दिन-रात वाचना देता रहूंगा, इससे दृष्टिवाद पूर्ण हो जाएगा।" स्थूलभद्र प्रयत्नपूर्वक अध्ययन करने लगे और उन्होंने दस पूर्व सांगोपांग सीख लिए / . एक दिन स्थूलभद्र एकान्त में बैठकर ग्यारहवां पूर्व याद कर रहे थे। उस समय उनकी सात बहनें भद्रबाहु के पास वन्दनार्थ आईं और स्थूलभद्र के विषय में पूछने लगीं। भद्रबाहु ने स्थान बता दिया। उधर स्थूलभद्र पूर्षों में प्रतिपादित यन्त्र-विद्या का परीक्षण कर रहे थे। इसलिए वे सिंह का रूप बनाकर बैठ गए। साध्वियां सिंह को देखकर डर गईं, वापिस लौट आईं और भद्रबाहु से कहने लगीं-"क्षमाश्रमण! आपने जो स्थान बताया वहां स्थूलभद्र नहीं हैं। उनके स्थान पर विकराल सिंह बैठा हुआ है। न जाने स्थूलभद्र का क्या हुआ!" .. भद्रबाहु ने कहा—“आर्यिकाओ,! वह सिंह तुम्हारा भाई स्थूलभद्र ही है।" आचार्य के वचन सुनकर साध्वियां फिर वहां गईं तो स्थूलभद्र को बैठा पाया। बहनों को विदा करके स्थूलभद्र भद्रबाहु के पास वाचना लेने गए। भद्रबाहु ने कहा—“अनगार! | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 23 / प्रस्तावना