________________ भावार्थ-चुल्लशतक श्रमणोपासक के पास अर्धरात्रि के समय एक देव हाथ में तलवार लेकर आया और कहने लगा—अरे चुल्लशतक श्रमणोपासक! यदि तू शीलादि व्रतों को नहीं छोड़ेगा तो मैं तेरे ज्येष्ठ पुत्र को घर से लाकर तेरे सामने मारूंगा। इस प्रकार चुलनीपिता के समान कहा। विशेष यही है कि यहां पर एक-एक के सात-सात टुकड़े-मांस खंड करने को कहा यावत् कनिष्ठ के रुधिर और मांस से छींटे दूंगा। चुल्लशतक फिर भी शान्त एवं ध्यानावस्थित रहा। मूलम् तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं चउत्थं पि एवं वयासी_"हं भो! चुल्लसयगा समणोवासया! जाव न भंजसि तो ते अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, छ वुड्ढि-पउत्ताओ, छ पवित्थर पउत्ताओ, ताओ साओ गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सव्वओ समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि" || 161 // छाया ततः खलु स देवश्चुल्लशतकं श्रमणोपासकं चतुर्थमप्येवमवादीत्—"हं भो चुल्लशतक! श्रमणोपासक! यावन्न भनक्षि तर्हि तेऽद्य या इमाः षड् हिरण्य-कोट्यो निधान-प्रयुक्ताः, षड् वृद्धि-प्रयुक्ताः षड् प्रविस्तर-प्रयुक्तास्ताः स्वस्माद् गृहान्नयामि, नीत्वाऽऽलभिकायां नगर्यां शृंङ्गाटक यावत्पथेषु, सर्वतः समन्ताद् विप्रकिरामि यथा खलु त्वमानॊ वशार्तोऽकाल एव जीविताद्व्यपरोपयिष्यसे। भावार्थ तए णं से देवे तदनन्तर वह देव, चुल्लसयगं समणोवासयं—चुल्लशकत श्रमणोपासक को, चउत्थं पि—चुतर्थ बार भी, एवं वयासी—इस प्रकार कहने लगा—हं भो चुल्लसयगा! समणोवासया–अरे चुल्लशतक ! श्रमणोपासक ! जाव न भंजसि—यावत् यदि तू शीलादि व्रतों का त्याग नहीं करता, तो ते अज्ज तो तुम्हारी आज, जाओ इमाओ—जो यह, छ हिरण्ण कोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ वुड्डिपउत्ताओ, छ पवित्थर पउत्ताओ—छः करोड़ मुद्राएं कोष में हैं, छः करोड़ व्यापार में लगी हुई हैं और छ: करोड़ गृह तथा उपकरणों में लगी हुई हैं, ताओ साओ गिहाओ नीणेमि–उनको घर से लाता हूं, नीणेत्ता—लाकर, आलभियाए नयरीए—आलभिका नगरी में, सिंघाडग जाव पहेसु शङ्गाटक तथा यावत् मार्गों में, सव्वओ समंता विप्पइरामि–चारों ओर बिखेर दूंगा। जहा णं तुमं—जिस से तू, अट्ट दुहट्ट वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ जिससे तू अत्यन्त चिन्तामग्न तथा विवश हो कर अकाल में ही जीवन से, ववरोविज्जसि—पृथक् हो जाएगा। ___ भावार्थ देव ने चुल्लशतक श्रमणोपासक को चौथी बार कहा हे चुल्लशतक! यदि तू शीलादि व्रतों को भंग नहीं करता है तो यह जो तेरे छः करोड़ सुवर्ण-मुद्राएं कोष में हैं, छः करोड़ व्यापार में श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 263 / चुल्लशतक उपासक, पञ्चम अध्ययन