________________ पंचमझायणं - पंचम अध्ययन मूलम् उक्खेवो पञ्चमस्स अज्झयणस्स, एवं खलु, जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नयरी / संखवणे उज्जाणे / जियसत्तू राया / चुल्लसए गाहावई अड्ढे जाव छ हिरण्ण-कोडीओ जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं / बहुला भारिया / सामी समोसढे / जहा आणन्दो तहा गिहि-धम्म पडिवज्जइ / सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ // 158 // छाया उत्क्षेपः पञ्चमस्याध्ययनस्य, एवं खलु जम्बूः! तस्मिन् काले तस्मिन् समये आलभिका नाम नगरी, शङ्खवनमुद्यानम् जितशत्रू राजा, चुल्लशतको गाथापतिराढ्यो यावत् षड् हिरण्यकोट्यो यावत् षड् व्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन / बहुला भार्या। स्वामी समवसृतः, यथाऽऽनन्दस्तथा गृहिधर्म प्रतिपद्यते। शेषं यथा कामदेवो यावद् धर्मप्रज्ञप्तिमुपसम्पद्य विहरति / शब्दार्थ उक्खेवो पंचमस्स अज्झयणस्स—पांचवें चुल्लशतक अध्ययन का उपक्षेप, जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया और सुधर्मा स्वामी ने उत्तर देते हुए कहा—एवं खलु जम्बू हे जम्बू! इस प्रकार, तेणं कालेणं तेणं समएणं—उस काल और समय, आलभिया नाम नयरी आलभिका नाम की नगरी, संखवणे उज्जाणे शंखवन उद्यान, जियसत्तू राया जितशत्रु राजा, चुल्लसए गाहावई और चुल्लशतक गाथापति था, अड्ढे जाव—वह समृद्ध यावत् अपरिभूत था, छ हिरण्ण कोडीओ छः करोड सुवर्ण मुद्राएं कोष में थीं, छः करोड़ व्यापार में लगी हुई थीं, और छः करोड़ घर तथा सामान में लगी हुई थीं। जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं यावत् प्रत्येक व्रज में दस हजार गायों के गणित से छः व्रज अर्थात् 60 हजार गाएं थीं। बहुला भारिया–बहुला भार्या थी, सामी समोसढे—भगवान् महावीर समवसृत हुए, जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ—आनन्द के समान उसने भी गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया, सेसं जहा कामदेवो शेष कामदेव के समान है, जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ—यावत् धर्मप्रज्ञप्ति को स्वीकार करके विचरने लगा। भावार्थ सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में इस प्रकार कहा—हे | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 261 / चुल्लशतक उपासक, पञ्चम अध्ययन |