________________ भणइ, एवं निरवसेसं जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकंते कप्पे विमाणे उववन्ने / चत्तारि पलिओवमाइं ठिई / महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ निक्खेवो // 157 // // सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं चउत्थं सुरादेवज्झयणं समत्तं // छाया-ततः खलु स सुरादेवः श्रमणोपासको धन्यां भार्यामेवमवादीत्–“एवं खलु देवानुप्रिये! कोऽपि पुरषस्तथैव कथयति यथा चुलनीपिता।" धन्यापि प्रतिभणति, यावत्कनीयांसं, “नो खलु . देवानुप्रियाः! युष्माकं कोऽपि पुरुषः शरीरे यमक-समकं षोडश रोगातङ्कान् प्रक्षिपति, एवं खलु कोऽपि पुरुषो युष्माकमुपसर्ग करोति", शेषं यथा चुलनीपित्रे भद्रा भणति / एवं निरवशेषं यावत्सौधर्मे कल्पेऽरुणकान्ते विमाने उपपन्नः / चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति / निक्षेपः / || सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां चतुर्थं सुरादेवं अध्ययनं समाप्तम् // शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से सुरादेवे—वह सुरादेव, समणोवासए श्रमणोपासक, धन्नं भारियं—(अपनी) धन्या पत्नी से, एवं वयासी—इस प्रकार बोला। एवं खलु देवाणुप्पिए! हे देवानुप्रिय! इस प्रकार, के वि पुरिसे—कोई पुरुष, तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया सब वृत्तान्त उसी प्रकार कहा जैसे चुलनीपिता ने कहा था, धन्ना वि पडिभणइ–धन्या ने भी उसी प्रकार उत्तर दिया, (भद्रा के समान), जाव—यावत्, कणीयसं—कनिष्ठ पुत्रादि (सब घर पर कुशल हैं), नो खलु देवाणुप्पिया निश्चय ही हे देवानुप्रिय! केवि पुरिसे—कोई पुरुष, तुब्भं तुम्हारे, सरीरंसि—शरीर में, जमग समगं—एक साथ ही, सोलस रोगायंके पक्खिवइ–सोलह रोगातङ्क डालता। (ऐसा कोई पुरुष नहीं है), एस णं के वि पुरिसे तुब्भं—यह किसी पुरुष ने तुम्हारे साथ, उवसग्गं करेइ-उपसर्ग किया है। सेसं जहा चुलणीपियस्स भद्दा भणइ–शेष जैसे चुलनीपिता को भाद्रा माता ने कहा था वैसे कहा, एवं निरवसेसं—इस प्रकार निरविशेष, जाव—यावत्, सोहम्मे कप्पे-सौधर्म कल्प में, अरुणकंते कप्पे-अरुणकांत कल्प, विमाणे उववन्ने विमान में वह उत्पन्न हुआ, चत्तारि पालिओवमाईं ठिई-वहां पर सुरादेव की चार पल्योपम स्थिति है, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ–महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। निक्खेवो निक्षेप। भावार्थ सुरादेव ने अपनी भार्या धन्या को कहा हे देवानुप्रिय! निश्चय ही यहां कोई पुरुष आया। और सब वृत्तान्त उसी प्रकार कहा, जैसे चुलनीपिता ने अपनी भद्रा माता को कहा था। धन्ना भार्या ने भी सुरादेव को कहा कि तेरे कनिष्ठ पुत्रादि सब सकुशल हैं। तुम्हारे शरीर में एक साथ सोलह रोग डालने का किसी पुरुष ने उपसर्ग किया है। शेष चुलनीपिता को माता भद्रा के समान कहा! इस प्रकार यावत् सुरादेव भी सौधर्म-कल्प में अरुणकान्त विमान में उत्पन्न हुआ। वहां पर इस की चार पल्योपम स्थिति है और वह भी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। निक्षेप–पूर्ववत् जान लेना चाहिए। || सप्तम अङ्ग उपासकदशा-सूत्र का चतुर्थ सुरादेव अध्ययन समाप्त // | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 260 / सुरादेव उपासक, चतुर्थ अध्ययन . |