________________ प्राचीन समय में सोलह भयंकर रोग प्रचलित थे, इनका वर्णन आगमों एवं प्रकरण ग्रन्थों में यत्र-तत्र मिलता है वह इस प्रकार है१.. श्वास–दमा। 2. कास-खांसी। 3. ज्वर बुखार। 4. दाह—पित-ज्वर अर्थात् शरीर में जलन / 5. कुक्षी–कमर में पीड़ा। 6. शूल-पेट में रह-रह कर दर्द उठना। 7. भगन्दर-गुदा पर फोड़ा। 8. अर्श बवासीर। 6. अजीर्ण बदहजमी–खाना न पचना / 10. दृष्टि-रोग–नजर का फटना आदि आंख की बीमारी / 11. मस्तक-शूल–सिर दर्द। . 12. अरुचि भूख न लगना / 13. कर्ण-वेदना–कानों के रोग, दुखना आदि / 14. कण्डू-खुजली। 15. उदर-रोग-पेट की बिमारी। 16. कुष्ट—कोढ। पली द्वारा धर्म में पुनः संस्थापनमूलम् तए णं सा धन्ना भारिया कोलाहलं सोच्चा निसम्म, जेणेव सुरादेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता एवं वयासी–“किण्णं देवाणुप्पिया! तुब्भेहिं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए?" || 156 // ___छाया ततः खलु सा धन्या भार्या कोलाहलं श्रुत्वा निशम्य, येनैव सुरादेवः श्रमणोपासकस्तेनैवोपागच्छति, उपागत्यैवमवादीत्-"किं खलु देवानुप्रियाः! युष्माभिर्महता महता शब्देन कोलाहलः कृतः।" शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, सा धन्ना भारिया–बह धन्या भार्या, कोलाहलं कोलाहल, सोच्चा- सुन करके, निसम्म–विचार करके, जेणेव सुरादेवे—जहां सुरादेव, समणोवासए श्रमणोपासक था, तेणेव उवागच्छइ वहां आई, उवागच्छित्ता आकर, एवं वंयासी—इस प्रकार बोली, किणं क्या, देवाणुप्पिया देवानुप्रिय!, तुम्भेहिं महया महया सद्देणं कोलाहले तुमने जोर-जोर से कोलाहल, कए? किया? / ___ भावार्थ सुरादेव की धन्या नाम की पत्नी कोलाहल सुनकर वहां आई और बोली हे देवानुप्रिय—क्या तुम चिल्लाए थे? मूलम् तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नं भारियं एवं वयासी—“एवं खुल देवाणुप्पिए! के वि पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया / धन्ना वि पडिभणइ, जाव कणीयसं। नो खुल देवाणुप्पिया! तुब्भं के वि पुरिसे सरीरंसि जमगं-समगं सोलस रोगायं| श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 256 / सुरादेव उपासक, चतुर्थ अध्ययन