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________________ गिण्हित्तए" त्ति कटु उद्धाइए / से वि य आगासे उप्पइए / तेण य खम्भे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए // 155 // छाया-ततः खलु तस्य सुरादेवस्य श्रमणोपासकस्य तेन देवेन द्वितीयमपि तृतीयमप्येवमुक्तस्य सतोऽयमेतद्रूप आध्यात्मिकः ४-"अहो खल्वयं पुरुषोऽनार्यो यावत्समाचरति येन मम ज्येष्ठं पुत्रं यावत्कनीयांसं यावदासिञ्चति येऽपि इमे षोडश रोगातङ्कास्तानपि चेच्छति मम शरीरे प्रक्षेप्तुं, तच्छ्रेय खलु ममैतं पुरुषं ग्रहीतुम्" इति कृत्वोत्थितः, सोऽपि चाऽऽकाशे उत्पतितः तेन च स्तम्भ आसादितः, महता-महता शब्देन कोलाहलः कृतः। शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स—सुरादेव श्रमणोपासक को, तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्तस्स समाणस्स—उस देव द्वारा दूसरी तथा तीसरी बार कहने पर, इमेयारूवे इस प्रकार, अज्झथिए–विचार उत्पन्न हुआ। अहो णं-अहो! इमे पुरिसे—यह पुरुष, अणारिए अनार्य, जाव—यावत्, समायरइ–(अनार्य कर्मों का) आचरण करता है, जेणं ममं जेटुं .. पुत्तं जिसने मेरे बड़े पुत्र, जाव—यावत्, कणीयसं—कनिष्ठ पुत्र के, जाव आयंचइ--रुधिरादि से सींचा, जे वि य इमे सोलस रोगायंका तथा जो ये सोलह रोगातंक हैं, ते वि य इच्छइ–उनको भी यह चाहता है, ममं सरीरगंसि पक्खिवित्तए—मेरे शरीर में डालना। तं सेयं खलु तो उचित होगा, ममं मुझे, एयं पुरिसं—इस पुरुष को पकड़ लेना, त्ति कटु उद्धाइए ऐसा विचार करके (उस देव को पकड़ने के लिए) उठा, से वि य आगासे उप्पइए—वह पुरुष आकाश में उड़ गया, तेण य खंभे आसाइए—सुरादेव ने खम्भे को पकड़ लिया, महया महया सद्देणं कोलाहले कए और जोर-जोर से कोलाहल करने लगा। भावार्थ सुरादेव उस देव के द्वारा दूसरी और तीसरी बार ऐसा कहने पर, सोचने लगा—“अहो! यह पुरुष अनार्य है, अनार्य कर्मों का आचरण करता है। इसने मेरे बड़े तथा छोटे पुत्र को मारकर मेरे शरीर को उनके रुधिर से छींटे दिए हैं। अब यह श्वास, खांसी तथा, कोढादि सोलह रोगों को मेरे शरीर में डालना चाहता है। अतः इसको पकड़ लेना ही उचित है।" यह विचार कर देव को पकड़ने के लिए उठा। परन्तु देव आकाश में उड़ गया। सुरादेव ने एक स्तम्भ पकड़ लिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। टीका—जब देव पुत्रों की हत्या करके भी सुरादेव को विचलित नहीं कर सका तो उसने पुनः प्रयत्न किया और सुरादेव के शरीर में सोलह भयंकर रोग डालने की धमकी दी। इस पर वह विचलित हो गया और देव को पकड़ने के लिए उठा। ___ सूत्र में ‘यमगं-समगं' शब्द आया है। यह संस्कृत के 'यम' और 'सम' शब्दों के साथ 'क' प्रत्यय लगाने पर बना है। इसका अर्थ है ‘एक साथ / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 258 / सुरादेव उपासक, चतुर्थ अध्ययन / /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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