________________ चउत्थमन्झयण | चतुर्थ अध्ययन मूलम् उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स, एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। सुरादेवे गाहावई अड्ढे / छ हिरण्ण-कोडीओ जाव छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। धन्ना भारिया। सामी समोसढे। जहा आणंदो तहेव पडिवज्जइ गिहिधम्म। जहा कामदेवो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिय धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ / / 151 // छाया—उत्क्षेपकश्चतुर्थस्याध्ययनस्य, एवं खलु जम्बूः! तस्मिन् काले तस्मिन् समये वाराणसी नाम नगरी, कोष्ठकश्चैत्यः / जितशत्रू राजा, सुरादेवो गाथापतिः आढ्यः / षड् हिरण्यकोटयो यावत् षड् व्रजा दसगोसाहस्रिकेण व्रजेन, धन्या भार्या, स्वामी समवसृतः, यथाऽऽनन्दस्तथैव प्रतिपद्यते गृहिधर्मम् / यथा कामदेवो यावत्-श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽऽन्तिक्री धर्मप्रज्ञप्तिमुपसम्पद्य विहरति। ___ शब्दार्थ उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स-तृतीय अध्ययन की भांति ही अब चतुर्थ अध्ययन का आरम्भ होता है इस अध्ययन के प्रारम्भ में भी जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया और सुधर्मास्वामी ने उत्तर देते हुए कहा—एवं खलु जम्बू! हे जम्बू! इस प्रकार, तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय, वाणारसी नामं नयरी-वाराणसी नामक नगरी थी, कोट्ठए चेइए—कोष्ठक नाम का चैत्य था, जियसत्तू राया—जितशत्रु राजा था, सुरादेवे गाहावई वहाँ सुरादेव नामक गाथापति रहता था, अड्ढे वह समृद्ध था, छ हिरण्ण कोडिओ—उसके पास छ: करोड़ मोहरें कोष में थीं, छ: करोड़ व्यापार में लगी हुई थीं और छः करोड़ घर तथा सामान में लगी थीं, छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं—प्रत्येक व्रज में दस हजार के हिसाब से छ: व्रज अर्थात् 60 हजार गाएँ थीं, धन्ना भारिया धन्या नाम की भार्या थी, सामी समोसढे भगवान् महावीर स्वामी समवसृत हुए, जहा आणंदो तहेव पडिवज्जइ गिहिधम्म-आनन्द के समान उसने भी गृहस्थ धर्म स्वीकार किया, जहा कामदेवो कामदेव के समान, जाव—यावत्, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं श्रमण भगवान् | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 254 / सुरादेव उपासक, चतुर्थ अध्ययन