________________ भावार्थ तदनन्तर चुलनीपिता ने श्रावक की पहली प्रतिमा स्वीकार की और आनन्द के समान यथा-सूत्र पालन किया। इसी प्रकार क्रमशः ग्यारहवीं प्रतिमा स्वीकार की। जीवन का उपसंहार और भविष्यमूलम् तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसगस्स महा-विमाणस्स उत्तर-पुरस्थिमेणं अरुणप्पभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ 5 / निक्खेवो // 150 // || सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं तइयं चुलणीपियाज्झयणं समत्तं // छाया–ततः खलु स चुलनीपिता श्रमणोपासकस्तेनोदारेण यथा कामदेवो यावत्सौधर्मे कल्पे सौधर्मावतंसकस्यौत्तरपौरस्त्येऽरुणप्रभे विमाने देवतयोपपन्नः। चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति / निक्षेपः।। || सप्तमस्यांगस्योपासकदशानां तृतीयं चुलनीपिता अध्ययनं समाप्तम् // शब्दार्थ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तदनन्तर वह चुलनीपिता श्रमणोपासक, तेणं उरालेणं उग्र तपश्चरण द्वारा, जहा कामदेवो कामदेव के समान, जाव—यावत् अन्त में, सोहम्मे . कप्पे सौधर्म कल्प में, सोहम्मवडिंसगस्स—सौधर्मावतंसक के, उत्तरपुरस्थिमेणं उत्तर पूर्व ईशानकोण में, अरुणप्पभे विमाणे—अरुणप्रभ विमान में, देवत्ताए उववन्ने—देव रूप में उत्पन्न हुआ, चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता—वहां उसकी चार पल्योपम की स्थिति प्रतिपादन की गई है। महाविदेहे वासे—वह चुलनीपिता देव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर, सिज्झिहिइ–सिद्ध होगा। ___भावार्थ कामदेव की भांति चुलनीपिता भी कठोर तपश्चरण द्वारा सौधर्म कल्प, सौधर्मावतंसक के उत्तरपूर्व ईशान कोण में स्थित अरुणप्रभ विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ। वहां उसकी चार पंल्योपम आयु है। वह भी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा। टीका–उपरोक्त तीन सूत्रों में चुलनीपिता अध्ययन का उपसंहार है। माता के कथनानुसार उसने आलोचना, प्रायश्चित्त आदि द्वारा आत्मशुद्धि की। तत्पश्चात् ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार की। संलेखना द्वारा शरीर का परित्याग करके सौधर्म देवलोक के अरुणप्रभ विमान में उत्पन्न हुआ। वहां से च्यव कर वह देव महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और मोक्ष प्राप्त करेगा। निक्षेप–उपसंहार पूर्व की भांति ही जान लेना चाहिए। || सप्तम अङ्ग उपासकदशासूत्र का तृतीय चुलनीपिता अध्ययन समाप्त // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 253 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन