________________ का भङ्ग हुआ और हिंसात्मक चेष्टा के कारण पौषधोपवास का भङ्ग हुआ। टीकाकार के नीचे लिखे शब्द हैं। एयस्स त्ति—माता ने फिर कहा—हे चुलनीपिता! तुम इस भूल के लिए आलोचना तथा प्रायश्चित करो। यहां मूल पाठ में यावत् शब्द दिया गया है जिससे टीकाकार ने नीचे लिखी बातों का अनुसन्धान किया है। 'अलोएहि-आलोचय, गुरुभ्यो निवेदय' अर्थात् गुरु के सामने अपनी भूल को निवेदन करो। 'पडिक्कमाहि-निवर्तस्व' अर्थात् वापिस लौटो, भूल के समय तुम बहिर्मुख हो गए, इसलिए पुनः आत्म-चिन्तन में लीन हो जाओ। 'निन्दाहि—आत्मसाक्षिकां कुत्सां कुरु'–आत्मा को साक्षी बनाकर इस भूल की निन्दा करो, मन में यह विचार करो कि मैंने बुरा कार्य किया है। ____ 'गरिहाहि—गुरु साक्षिकां कुत्सां विदेहि'—गुरु को साक्षी बनाकर उस भूल की प्रकट रूप में निन्दा करो। . विउट्टाहि-वित्रोटय तद्भावानुबन्धच्छेदं विदेहि' तुम्हारे मन में उस कार्य के सम्बन्ध में जो विचारधारा चल रही है उसे समाप्त कर दो, तोड़ डालो। 'विसोहेहि-अतिचारमलक्षालनेन'–अतिचार अर्थात् दोषरूपी मैल को धोकर अपनी आत्मा को शुद्ध कर लो। 'अकरणयाए अब्मुढेहि-तदकरणाभ्युपगमं कुरु'–पुनः ऐसा न करने का संकल्प करो। 'अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जाहि-यथार्हं तपः कर्म प्रायश्चित्तं प्रति पद्यस्व' शुद्धि के लिए या-योग्य तपस्या तथा प्रायश्चित्त अङ्गीकार करो। . कुछ लोगों का मत है कि श्रावक के लिए निशीथ सूत्र में प्रायश्चित का विधान नहीं है, अतः उसे इसकी आवश्यकता नहीं है। यह मान्यता ठीक नहीं है, क्योंकि उपरोक्त पाठ में चुलनीपिता श्रावक को भी प्रायश्चित लेने का आदेश किया गया है। यहां वृत्तिकार के शब्द निम्नलिखित हैं—“एतेन च निशीथादिषु गृहिणं प्रति प्रायश्चित्तस्याप्रतिपादनान्न तेषां प्रायश्चित्तमस्तीति ये प्रतिपद्यन्ते, तन्मतमपास्तं / साधूद्देशेन गृहिणोऽपि प्रायश्चित्तस्य जीतव्यवहारानुपातित्वात्।" . कुछ लोगों का मत है कि चुलनीपिता माता की रक्षा करने के लिए उठा, इसी कारण उसका व्रत भङ्ग हो गया, क्योंकि साधु को छोड़कर किसी अन्य प्राणी को बचाना पाप हैं। यह धारणा ठीक नहीं है। श्रावक के व्रतों में यह स्पष्ट है कि उसे केवल निरपराध को मारने का त्याग होता है। अपराधी श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 251 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन |