________________ पुरुषस्तवोपसर्ग करोति, एतत् खलु त्वया विदर्शनं दृष्टम्, तत् खलु त्वमिदानीं भग्न-व्रतो, भग्न-नियमो, भग्न-पौषधो विहरसि, तत्खलु त्वं पुत्र ! एतस्य स्थानस्य आलोचय यावत्प्रतिपद्यस्व।" शब्दार्थ तए णं सा भद्दा सत्थवाही तदनन्तर वह भद्रा सार्थवाही, चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी–चुलनीपिता! श्रमणोपासक को इस प्रकार कहने लगी–नो खलु केइ पुरिसे ऐसा कोई पुरुष नहीं था जिसने, तव तेरे, जाव यावत्, कणीयसं पुत्तं कनिष्ठ पुत्र को, साओ गिहाओ नीणेइ-अपने घर से निकाला हो, नीणेत्ता निकाल कर, तव अग्गओ घाएइ–तुम्हारे सामने मारा हो, एस णं केइ पुरिसे—यह किसी पुरुष ने, तव उवसग्गं करेइ–तुझे उपसर्ग किया है, एस णं तुमे—यह तुमने, विदरिसणे दिठे मिथ्या घटना देखी है। तं णं तुमं इयाणिं—इस लिए हे पुत्र! तुम्हारा, भग्गव्वए—व्रत टूट गया है, भग्गनियमे नियम टूट गया है, भग्गपोसहे—पोषध भग्न हो गया है, तं णं तुमं पुत्ता—इसलिए, तुम हे पुत्र! एयस्स ठाणस्स आलोएहि—इस भूल की आलोचना करो, जाव पडिवज्जाहि—यावत् आत्म-विशुद्धि के लिए प्रायश्चित अङ्गीकार करो। भावार्थ तब भद्रा सार्थवाही चुलनीपिता श्रावक से बोली- "हे पुत्र! कोई भी पुरुष यावत् तुम्हारे कनिष्ठ पुत्र को घर से नहीं लाया, न तेरे सामने मारा है / यह किसी ने तुझे उपसर्ग किया है। तू ने मिथ्या घटना देखी है। कषाय के उदय से चलित-चित्त होकर, तुम उस पुरुष को पकड़ने के लिए उठे, इससे तुम्हारा व्रत, नियम और पौषधोपवास टूट गया है। इस भूल के लिए आलोचना करो और प्रायश्चित लेकर आत्म-शुद्धि करो।" टीका—चुलनीपिता का चिल्लाना सुनकर माता आई तो उसने सारी घटना कह सुनाई। माता ने उसे आश्वासन देते हुए कहा बेटा! तेरे तीनों पुत्र आराम से सोए हुए हैं। तुम्हारे साथ कोई दुर्घटना नहीं हुई, तुझे भ्रम हुआ है। किसी मिथ्या दृष्टि देव ने तेरे सामने यह भयंकर दृश्य उपस्थित किया है। टीकाकार ने विदर्शन शब्द का अर्थ नीचे लिखे अनुसार किया है ‘एस णं तुमे विदरिसणे' एतच्च त्वया विदर्शनं–विरूपाकारं विभीषिकादि दृष्टं— अवलोकितमिति। 'भग्गव्वए त्ति' भग्नव्रतः स्थूलप्राणातिपातविरतेर्भावतो भग्नत्वात्, तद्विनाशार्थं कोपेनोद्धावनात्, सापराधस्यापि व्रतविषयीकृतत्वात्, भग्ननियमः कोपोदयेनोत्तरगुणस्य क्रोधाभिग्रहरूपस्य भग्नत्वात्, भग्नपौषधो-ऽव्यापारपौषधभङ्गत्वात् / भग्गव्वए-भग्गपोसहे—माता ने पुनः कहा—तुम क्रोध में आकर उस मायावी को पकड़ने के लिए उठे, इससे तुम्हारा व्रत, नियम और पौषधोपवास टूट गया। यहां व्रत का अर्थ है—स्थूल प्राणातिपातविरमण रूप प्रथम व्रत। नियम का अर्थ है—उत्तर गुण। क्रोध आने के कारण उत्तर गुणों / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 250 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन /