________________ कठोर कष्ट उठाए हैं, मेरे सामने लाकर मार डालना चाहता है। अतः यही उचित है कि मैं इसको पकड़ लूं।" यह सोचकर वह पकड़ने के लिए उठा तो देव आकाश में उड़ गया। चुलनीपिता के हाथ में खम्बा लगा। वह उसे पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। टीका देवय-गुरु-जणणी—यहां माता के लिए तीन शब्द आये हैं 1. देवय देवता का अर्थ है पूज्य / माता देवता के समान पूजा और सत्कार के योग्य होती है। सन्तान के मन में उसके प्रति सदा भक्ति-भाव रहना चाहिए / 2. गुरु-गुरु का कार्य है—अच्छी शिक्षा देकर बालक को योग्य बनाना / माता भी बालक में अच्छे संस्कार डालती है उसे अच्छी बातें सिखाती है और उसके शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक सभी गुणों का विकास करती है अतः माता गुरु भी है। 3. जणणी वह जन्म देती है और सन्तान के लिए अनेक कष्ट उठाती है। अतः उसके प्रति कृतज्ञ होना सन्तान का कर्तव्य है। माता के प्रति यह भावना एक आदर्श श्रावक ने प्रकट की है। उसके प्रति श्रद्धा को मिथ्यात्व कहकर हेय बताना अनुचित और दुर्मति है। . माता का आगमन और चुलनीपिता को शिक्षणमूलम् तए णं सा भद्दा सत्यवाही तं कोलाहल-सदं सोच्चा निसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी—“किण्णं पुत्ता तुमं महया महया सद्देणं कोलाहले कए?" || 138 // छाया ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही तं कोलाहलशब्दं श्रुत्वा निशम्य येनैव चुलनीपिता श्रमणोपासकस्तेनैवोपागच्छति, उपागत्य चुलनीपितरं श्रमणोपासकमेवमवादीत्— "किं खलु पुत्र ! त्वया महता 2. शब्देन कोलाहलः कृतः?". __ शब्दार्थ तए णं सा भद्दा सत्थवाही तदनन्तर वह भद्रासार्थवाही, तं—उस, कोलाहल-सदं सोच्चा–कोलाहल शब्द को सुनकर, निसम्म तथा विचार कर, जेणेव—जहाँ, चुलणीपिया समणोवासए चुलनीपिता श्रमणोपासक था, तेणेव वहाँ, उवागच्छइ—आई, उवागच्छित्ता—आकर, चुलणीपियं समणोवासयं—चुलनीपिता श्रमणोपासक को, एवं वयासी—इस प्रकार कहने लगी किण्णं पुत्ता ! क्यों पुत्र !, तुम तुमने, महया 2 सद्देणं—जोर-जोर के शब्दों से, कोलाहले कए ?कोलाहल किया ? __ भावार्थ भद्रा सार्थवाही चिल्लाहट सुनकर चुलनीपिता श्रावक के पास आई और पूछा-'बेटा तुम जोर-जोर से क्यों चिल्लाए।" | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 245 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन |