________________ कृतं तथा चिन्तयति, यावद् गात्रमासिञ्चति, येन मम मध्यमं पुत्रं स्वस्माद् गृहाद् यावच्छोणितेनाचाऽऽसिञ्चति, येन मम कनीयांसं पुत्रं स्वस्माद् गृहात्तथैव यावद् आसिञ्चति, याऽपि च खलु इयं मम माता भद्रा सार्थवाही दैवत-गुरु-जननी दुष्कर-दुष्कर कारिका तामपि च खलु इच्छति स्वस्माद् गृहान्नीत्वा ममाग्रतो धातयितुम् / तच्छ्रेयः खलु ममैवं पुरुषं ग्रहीतुम्" इति कृत्वोत्थितः, सोऽपि चाकाशे उत्पतितः, तेन च स्तम्भ आसादितः महता 2 शब्देन कोलाहलः कृतः। शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, तस्स—उस, चुलणीपियस्स समणोवासयस्स—चुलनीपिया श्रमणोपासक के, तेणं देवेणं—उस देव के द्वारा, दोच्चंपि तच्चंपि–द्वितीय तथा तृतीय बार, एवं वुत्तस्स समाणस्स—इस प्रकार कहे जाने पर, इमेयारूवे—ये इस प्रकार के, अज्झथिए ५–विचार यावत उत्पन्न हए. अहो णं अहो! इमे परिसे यह पुरुष, अणारिए अणारियबुद्धी-अनार्य तथा अनार्यबुद्धि है, अणारियाई पावाइं कम्माइं—अनार्योचित पाप कर्मों का, समायरइ–आचरण करता है, जेणं जिसने, ममं—मेरे, जेट्टुं पुत्तं—ज्येष्ठ पुत्र को, साओ गिहाओ अपने घर * से, नीणेइ–निकाला, नीणेत्ता निकाल कर, ममं अग्गओ मेरे सामने, घाएइ–मार दिया, घाइत्ता—मार करके, जहा कयं जैसे उस देव ने किया, तहा चिंतेइ उसी प्रकार सोचने लगा, जाव गायं आयंचइ यावत् उस देव ने मेरे शरीर को मांस और रुधिर से सींचा, जेणं मम—उसने मेरे, मज्झिमं पुत्तं मंझले पुत्र को, साओ गिहाओ-घर से, जाव—यावत्, सोणिएण य आयंचइ शोणित से सिंचन किया, जेणं मम—जिसने मेरे, कणीयसं पुत्तं—कनिष्ठ पुत्र को, साओ गिहाओ घर से निकालकर, तहेव जाव आयंचइ—उस प्रकार यावत् सिंचन किया। जा वि य णं और जो, इमा—यह, मम माया मेरी माता, भद्दा सत्थवाही भद्रा सार्थवाही, देवय गुरु जणणी—जो कि देवता, गुरु तथा जननी है, दुक्कर-दुक्करकारिया दुष्कर से भी दुष्कर क्रियाओं के करने वाली है, तं पि य णं—उसको भी यह, इच्छइ—चाहता है, साओ गिहाओ—अपने घर से, नीणेत्ता—लाकर, मम अग्गओ घाएत्तए—मेरे सामने मारना चाहता है, तं सेयं खलु तो यह ठीक होगा कि, ममं—मैं, एयं पुरिसं गिण्हित्तए इस पुरुष को पकड़ लूँ, त्ति कटु ऐसा विचार करके, उद्धाइए—उठा, से वि य आगासे उप्पइए और वह देव आकाश में उड़ गया, तेणं च खम्भे आसाइए—चुलनीपिता के हाथ में खम्भा आ गया और वह, महया २–सद्देणं कोलाहले कए—उच्च स्वर में पुकारने लगा। __ भावार्थ देव के द्वितीय तथा तृतीय बार ऐसा कहने पर चुलनीपिता श्रावक विचारने लगा—“यह पुरुष अनार्य है, इसकी बुद्धि अनार्य है। अनार्योचित पाप कर्मों का आचरण करता है, इसने मेरे बड़े पुत्र को घर से उठा लिया और मेरे सामने लाकर मार डाला। इसी प्रकार मध्यम और कनिष्ठ पुत्र को भी मार डाला। चुलनीपिता के मन में देव द्वारा किए गए क्रूर कार्य आने लगे। उसने फिर सोचा अब यह मेरी माता को जो देवता और गुरु के समान पूजनीय है तथा जिसने मेरे लिए श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 244 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन