________________ 5. ज्ञान प्रवाद–मति आदि पांच ज्ञानों का स्वरूप एवं भेद-प्रभेद / 6. सत्य प्रवाद–सत्य, संयम अथवा सत्य वचन और उसके प्रतिपक्ष असत्य का निरूपण / 7. आत्म प्रवाद—जीवन का स्वरूप विविध नयों की अपेक्षा से / 8. कर्म प्रवाद या समय प्रवाद—कर्मों का स्वरूप भेद-प्रभेद आदि / 6. प्रत्याख्यान प्रवाद व्रत-नियमों का स्वरूप / 10. विद्यानुप्रवाद–विविध प्रकार की आध्यात्मिक सिद्धियां और उनके साधन / 11. अवन्ध्य-ज्ञान, तप, संयम आदि का शुभ एवं पाप कर्मों का अशुभ फल / इसे कल्याणपूर्व भी कहा जाता है। ..... 12. प्राणायु–इन्द्रियां, श्वासोच्छ्वास, मन आदि प्राण तथा आयुष्य। 13. क्रिया विशाल—कायिक, वाचिक आदि विविध प्रकार की शुभाशुभ क्रियाएं। 14. बिन्दुसार-लोक-बिन्दुसार लब्धि का स्वरूप एवं विस्तार / पूर्व साहित्य इस बात का द्योतक है कि जैन परम्परा महावीर से पहले भी विद्यमान थी और उस समय उसके पास विशाल साहित्य था। वर्तमान-आगम जैन परम्परा के अनुसार श्रुत-साहित्य का प्रारम्भ त्रिपदी से होता है। तीर्थंकर भगवान तीन पदों का उच्चारण करते हैं और गणधर उसी बीज को लेकर विशाल श्रुत-साहित्य की रचना करते हैं। वह त्रिपदी निम्नलिखित है "उप्पन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा।" अर्थात् प्रत्येक वस्तु उत्पन्न होती है, नष्ट होती है और स्थिर रहती है। उत्पत्ति, स्थिति और विनाश वस्तु का लक्षण है। इसी सूत्र का विस्तार विशाल जैन-दर्शन है। __ भगवान महावीर की परम्परा में उपरोक्त त्रिपदी का विस्तार करके सुधर्मा स्वामी ने बारह अङ्गों की रचना की। आचाराङ्ग सूत्रकृताङ्ग स्थानाङ्ग समवायाङ्ग व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्म कथा 7. उपासकदशाङ्ग 8. अन्तकृद्दशा अनुत्तरोपपातिक प्रश्न व्याकरण 11. विपाक 12. दृष्टिवाद .. र / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 20 / प्रस्तावना