________________ कृत्वाऽऽदानभृते कटाहे आदहामि, आदह्य तव गात्रं मांसेन च शोणितेन चाऽऽसिञ्चामि यथा खलु त्वमार्त्त दुःखात वशार्तोऽकाल एव जीविताद्व्यपरोपयिष्यसे / शब्दार्थ-तए णं से देवे—तदनन्तर उस देव ने, चुलणीपियं समणोवासयं—चुलनीपिता श्रमणोपासक को, अभीयं जाव पासइ–निर्भय यावत् देखा, पासित्ता–देखकर, चउत्थं पि-चौथी बार, चुलणीपियं समणोवासयं-चुलनीपिता श्रमणोपासक को, एवं वयासी—इस प्रकार कहा-हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! हे चुलनीपिता श्रमणोपासक! अपत्थियपत्थिया मृत्यु की प्रार्थना करने वाले, जइ णं यदि, तुमं-तू, जाव यावत्, न भंजेसि—शीलादि गुणों को भंग न करेगा, तं तओ अहं—तो मैं, अज्ज—आज, जा इमा—जो यह, तव माया-तेरी माता, भद्दा सत्थवाही-भद्रा सार्थवाही, देवय-गुरु-जणणी देवता तथा गुरु के समान जननी है, दुक्कर-दुक्करकारिया–जिसने तेरा (लालन पालनादि) अति दुष्कर कार्य किया है, तं ते—उसको, साओ गिहाओ-अपने घर से, नीणेमि–लाता हूं, नीणित्ता–लाकर, तव अग्गओ घाएमि तेरे सामने मारता हूं, घाइत्ता—मार करके, तओ-तीन, मंससोल्लए—मांस खंड, करेमि–करता हूं, करेत्ता-करके, आदाण भरियसि कडाहयंसि—अदहन भरे कडाहे में, अद्दहेमि–तलता हूं, अद्दहित्ता तलकर तव गायं तेरे शरीर को, मंसेण य—मांस और सोणिएण य–शोणित से, आयंचामि—सिंञ्चन करता हूं, जहा णं तुमं— जिससे तू, अट्ट दुहट्ट वसट्टे आर्त, दुखी तथा विवश होकर, अकाले चेव-अकाल में ही, जीवियाओ ववरोविज्जसि–जीवन से रहित हो जाएगा। ___ भावार्थ-उसने चौथी बार चुलनीपिता से कहा-“अरे चुलनीपिता! अनिष्ट के कामी ! यदि तू व्रतों को भंग नहीं करता तो मैं तेरी भद्रा नाम की माता को जो तेरे लिए देवता तथा गुरु के समान पूज्य है तथा जिसने तेरे लिए अनेक कष्ट उठाए हैं, घर से निकाल लाऊंगा, और तेरे सामने मार डालूंगा। उसके तीन टुकड़े करके तेल से भरे कडाहे में तलूंगा। उसके मांस और रुधिर से तेरे शरीर को छीटूंगा। जिससे तू चिन्ता-मग्न तथा विवश होकर अकाल में ही जीवन से हाथ धो बैठेगा। मूलम् तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ // 135 // छाया ततः खलु स चुलनीपिता श्रमणोपासकस्तेन देवेनैवमुक्तः सन्नभीतो यावद्विहरतिः / ___ शब्दार्थ तए णं से तदनन्तर वह, चुलणीपिया समणोवासए-चुलनीपिता श्रमणोपासक, तेणं देवेणं उस देव के, एवं वुत्ते समाणे ऐसा कहने पर भी, अभीए जाव—यावत् निर्भय होकर, विहरइ-धर्माराधन में लगा रहा। भावार्थ चुलनीपिता श्रावक देव के ऐसा कहने पर भी निर्भय बना रहा। | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 242 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन