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________________ पोसहसालाए पौषधशाला में, पोसहिए बंभयारी—पौषध तथा ब्रह्मचर्य स्वीकार कर के, समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रमण भगवान् महावीर के, अंतियं—पास प्राप्त, धम्मपण्णतिं धर्म प्रज्ञप्ति को, उवसंपज्जित्ता णं विहरइ स्वीकार करके विचरने लगा। ___भावार्थ—उस वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति रहता था। वह सब प्रकार सम्पन्न यावत् अपरिभूत (अजेय) था। उसकी श्यामा नामक भार्या थी। आठ करोड़ सुवर्ण कोष में जमा थे, आठ करोड़ व्यापार में लगे हुए थे, और आठ करोड़ घर तथा समान में लगे हुए थे। दस हजार गायों के एक गोकुल के हिसाब से आठ गोकुल थे अर्थात् अस्सी हजार पशुधन था। वह भी आनन्द की तरह राजा-ईश्वर आदि का आधार यावत् सब कार्यों में प्रोत्साहन देने वाला था। महावीर स्वामी पधारे, उपदेश श्रवण के लिए परिषद् निकली। चुलनीपिता भी आनन्द श्रावक की भाँति घर से निकला और उसी तरह गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया। उसी प्रकार गौतम स्वामी ने प्रश्न पूछे। शेष वृत्तान्त कामदेव के समान जानना चाहिए। यावत् वह भी पौषधशाला में पौषध तथा ब्रह्मचर्य को स्वीकार करके भगवान महावीर के द्वारा प्रतिपादित धर्मप्रज्ञप्ति को अङ्गीकार करके विचरने लगा अर्थात् तदनुसार मध्य-रात्रि के समय धर्मसाधना करने लगा। उपसर्ग के लिए देव का आगमन - मूलम् तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए // 127 // . छाया-ततः खलु तस्य चुलनीपितुः श्रमणोपासकस्य पूर्वरात्रापरत्रकालसमये एको देवोऽन्तिकं प्रादुर्भूतः / शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स—उस चुलनीपिता श्रमणोपासक के, अंतियं समीप, पुव्वरत्तावरत्त कालसमयंसि—मध्यरात्रि के समय, एगे देवे पाउब्भूए—एक देव प्रकट हुआ। ___ चुलनीपिता को धमकी- मूलम् तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-"हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेठं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, नीणित्ता तव अग्गओ घाएमि, घाइत्ता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहित्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि // 128 // | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 237 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन |
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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