________________ कोट्ठए चेइए वहां कोष्ठक नाम का चैत्य था। कहीं-कहीं इसके स्थान पर महाकाम वन का निर्देश मिलता है। चुलणीपिता का परिचय और पौषधग्रहणमूलम् तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिया नामं गाहावई परिवसइ, अड्ढे, जाव अपरिभूए / सामा भारिया / अट्ठ हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, अट्ट वुड्डि पउत्ताओ, अट्ठ पवित्थर-पउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं / जहा आणंदो राईसर जाव सव्व-कज्ज-वड्ढावए यावि होत्था / सामी समोसढे / परिसा निग्गया / चुलणीपियावि, जहा आणंदो तहा, निग्गओ। तहेव गिहिधम्मं पडिवज्जइ / गोयम पुच्छा। तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसह-सालाए पोसहिए बंभयारी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ // 126 // . छाया-तत्र खलु वाराणस्यां नगर्यां चुलनीपिता नाम गाथापतिः परिवसति, आढ्यो, यावदपरिभूतः / श्यामा भार्या | अष्ट हिरण्यकोट्यो निधानप्रयुक्ताः, अष्ट वृद्धिप्रयुक्ताः, अष्ट प्रविस्तरप्रयुक्ताः अष्टव्रजा दशगोसाहस्रिकेण व्रजेन | यथा आनन्दो राजेश्वर-यावत्सर्वकार्यवर्धापकश्चासीत् / स्वामी समवसृतः / परिषन्निर्गता, चुलनीपिताऽपि यथाऽऽनन्दस्तथा निर्गतः / तथैव गृहधर्मं प्रतिपद्यते / गौतम पृच्छा तथैव / शेषं यथा कामदेवस्य यावत् पौषधशालायां पौषधिको ब्रह्मचारी, श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिकी धर्मप्रज्ञप्तिमुपसम्पद्य विहरति / , शब्दार्थ-तत्थ णं वाणारसीए नयरीए-उस वाराणसी नगरी में, चुलणीपिया नाम गाहावई परिवसइ-चुलणीपिता नामक गाथापति रहता था, अड्ढे जाव अपरिभूए—वह आढ्य-धनाढ्य यावत् अपरिभूत था, सामा भारिया-उसकी श्यामा नामक भार्या थी, अट्ठ हिरण्णकोडीओ—आठ करोड सुवर्ण, निहाण पउत्ताओ—कोष में रखे हुए थे, अट्ठ वुडि पंउत्ताओ—आठ कोटि व्यापार में लगे हुए थे। , अट्ठ पवित्थर पउत्ताओ-आठ करोड़ भवन तथा अन्य उपकरणों में लगे हुए थे, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं-दस हजार गायों के एक गोकुल के हिसाब से आठ गोकुल थे अर्थात् अस्सी हजार गौएं थीं। जहा आणंदो राईसर जाव सव्व कज्ज वड्डावए यावि होत्था-आनन्द की तरह, वह भी राजा-ईश्वर आदि का आधार यावत् सब कार्यों का वर्धक था, सामी समोसढे—भगवान् महावीर स्वामी पधारे, परिसा निग्गया–परिषद् निकली, चुलणीपियावि-चुलनीपिता भी, जहा आणंदो तहा निग्गओ—आनन्द के समान घर से निकला, तहेव गिहि धम्म पडिवज्जइ–उसी प्रकार गृहस्थ धर्म स्वीकार किया, गोयम पुच्छा तहेव—उसी प्रकार भगवान् गौतम ने प्रश्न किया, सेसं जहा कामदेवस्स–शेष वृत्तान्त कामदेव के समान जानना चाहिए। , जाव—यावत् वह, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 236 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन