________________ तइयमन्झयण | तृतीय अध्ययन मूलम् उक्खेवो तइयस्स अज्झयणस्स एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए.चेइए। जियसत्तू राया // 125 // ___छाया उत्क्षेपस्तृतीयस्याध्ययनस्य एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये वाराणसी नाम नगरी कोष्ठकश्चैत्यम्, जितशत्रु राजा। शब्दार्थ-तृतीय अध्ययन का उपक्षेप पूर्ववत्-एवं खलु जम्बू ! हे जम्बू ! इस प्रकार, तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल उस समय, वाणारसी नामं नयरी-वाराणसी नाम की नगरी थी, कोट्टए चेइए–कोष्ठक नाम का चैत्य था, जियसत्तूराया—जितशत्रु राजा था। भावार्थ हे जम्बू ! उस काल उस समय वाराणसी नामक नगरी थी, वहाँ कोष्ठक नामक चैत्य था और जितशत्रु राजा राज्य करता था। ___टीका तृतीय अध्ययन में चुलनीपिता नामक श्रमणोपासक का वर्णन है। अध्ययन के प्रारम्भ में उपक्षेप का निर्देशन किया गया है। इसका अर्थ है जैसे द्वितीय अध्ययन श्री जम्बू स्वामी के प्रश्न और श्री सुधर्मा स्वामी के उत्तर के साथ प्रारम्भ हुआ, उसी प्रकार यहाँ पर भी प्रश्न आदि की योजना कर लेनी चाहिए | जम्बू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा-भगवन्! यदि द्वितीय अध्ययन का भगवान् महावीर ने उपरोक्त अर्थ बताया है तो तृतीय अध्ययन का क्या अर्थ है? सुधर्मा स्वामी जी ने उत्तर दिया, हे जम्बू! मैंने तृतीय अध्ययन को नीचे लिखे अनुसार सुना है। यहाँ वृत्तिकार के नीचे लिखे शब्द हैं___ 'उक्खेवो' त्ति उपक्षेपः-उपोद्घातः तृतीयाध्ययनस्य वाच्यः, स चायम्-जइ णं भन्ते! समणेणं भगवया जाव सम्पत्तेणं उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते? इति कण्ठ्यश्चायम् / ' .. वाराणसी नगरी में जितशत्रु नाम का राजा था / प्राकृत में वाराणसी का वाणारसी हो जाता है। इसी आधार पर हिन्दी में बनारस कहा जाता रहा है। भारत के स्वतन्त्र होने पर पुनः संस्कृत नाम को महत्व दिया गया और उसे फिर वाराणसी कहा जाने लगा है। . श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 235 / चुलनीपिता उपासक, तृतीय अध्ययन |