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________________ जीवन का उपसंहार__ मूलम् तए णं से कामदेवे समणोवासए बहूहिं जाव भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासग-परियागं पाउणित्ता, एक्कारस उवासग-पडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सष्टुिं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्म-वडिंसयस्स महा-विमाणस्स उत्तर-पुरस्थिमेणं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, कामदेवस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता // 123 // ___ छाया-ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासको बहुभिर्यावद् भावयित्वा विंशतिं वर्षाणि श्रमणोपासक पर्यायं पालयित्वा, एकादशोपासकप्रतिमाः, सम्यक् कायेन स्पृष्ट्वा मासिक्या संलेखनयाऽऽत्मानं जोषयित्वा, षष्ठिं भक्तानि अनशनेन छित्वा, आलोचितप्रतिक्रान्तः, समाधिप्राप्तः, कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पे सौधर्मावतंसकस्य महाविमानस्योत्तरपौरस्त्येऽरुणाभे विमाने देवतयोपपन्नः। तत्र खलु अस्त्येकेषां देवानां चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। कामदेवस्यापि देवस्य चत्वारि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए—वह कामदेव श्रमणोपासक, बहूहिं जाव भावेत्ता—बहुत सी प्रतिमाओं-अभिग्रहों द्वारा आत्मा को भावित कर, वीसं वासाइं—बीस वर्ष तक, समणोवासग परियागं पाउणित्ता–श्रमणोपासक पर्याय को पाल कर, एक्कारस्स उवासग पडिमाओ—ग्यारह उपासक प्रतिमाओं को, सम्मं काएणं फासित्ता काय द्वारा सम्यक् प्रकार से स्पर्श कर, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता–मासिकी संलेखना द्वारा आत्मा को जोषित कर, सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता—अनशन द्वारा साठ भक्तों का छेदन करके, आलोइय पडिक्कते—आलोचना करके तथा पाप कर्म से निवृत्त होकर, समाहिपत्ते समाधि को प्राप्त करके, काल मासे कालं किच्चा मृत्यु काल आने पर काल करके, सोहम्मे कप्पे—सौधर्म कल्प में, सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स सौधर्मावतंसक महाविमान के. उत्तर परस्थिमेणं उत्तरपर्व दिशा में स्थित, अरुणाभे विमाणे—अरुणाभ नामक विमान में, देवत्ताए उववन्ने देवरूप से उत्पन्न हुआ। तत्थणं वहां पर, अत्थेगइयाणं देवाणं—बहुत से देवों की, चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता–चार पल्योपम की स्थिति कही गई है, कामदेवस्स वि देवस्स—देव रूप में उत्पन्न कामदेव की भी, चत्तारि पलिओवमाइं चार पल्योपम की, ठिई स्थिति, पण्णत्ता—कही गई है। भावार्थ तदनन्तर वह कामदेव श्रमणोपासक बहुत से अभिग्रहों द्वारा यावत् आत्मा को भावित | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 232 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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