________________ 2. चार लोकपाल—पूर्व, पश्चिम, दक्षिण तथा उत्तर दिशा के अधिपति—सोम, यम, वरुण वैश्रवण / वैदिक परम्परा में दिक्पालों की संख्या आठ है, उसमें चार विदिशाओं के अधिपति भी गिने जाते हैं। . 3. आठ अग्र महिषियां-अर्थात् पटरानियां / प्रत्येक का परिवार पाँच हजार माना जाता है। इस प्रकार इन्द्र के अन्तःपुर में चालीस हजार देवियाँ हैं। कहीं-कहीं प्रत्येक अग्रमहिषी का परिवार सोलह हजार माना जाता है। 4. तीन परिषदें—आभ्यन्तर, मध्यम और बाह्य / 5. सात प्रकार की अनीक अर्थात् सेनाएँ—पैदल, घोड़े, रथ, हाथी तथा बैल, इस प्रकार पाँच युद्ध सम्बन्धी सेनाएँ तथा गन्धर्वानीक अर्थात् गाने-बजाने वालों का दल और नाट्यानीक अर्थात् नाटक करने वालों का दल। 6. सात सेनापति–उपरोक्त सातों प्रकार की सेनाओं के संचालक / 7. अङ्गरक्षक इन्द्र की चार प्रकार की अङ्गरक्षक सेनाएँ हैं। प्रत्येक में 84 हजार सैनिक होते हैं। यह इन्द्र की ऋद्धि का सामान्य वर्णन है। उपरोक्त सूत्र में देव' शब्द के पहले भी 'जाव' शब्द आया है। वह नीचे लिखे पाठ की ओर निर्देश देता है-"जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गन्धव्वेण वा" अर्थात् कामदेव श्रमणोपासक को यक्ष, राक्षस, किन्नर किम्पुरुष, महोरग तथा गन्धर्व कोई भी धर्म से विचलित करने में समर्थ नहीं है। सूत्र में 'नाई' पद 'नैव' अर्थ का द्योतक है, इस पर वृत्तिकार के नीचे लिखे शब्द हैं—“नाई भुज्जो करणयाए' न-नैव, आई ति निपातो वाक्यालङ्कारे अवधारणे वा, भूयः करणतायां पुनराचरणे न प्रवर्तिष्य इति गम्यते" अर्थात् नाईं शब्द का अर्थ है 'नहीं'। यहाँ 'न' के साथ लगा हुआ 'आई' केवल वाक्य का अलङ्कार है। किसी विशेष अर्थ को प्रकट नहीं करता अथवा इसका अर्थ है अवधारण या निश्चय और इसका प्रयोग 'नैव' के अर्थ में हुआ है। देव यह निश्चय प्रकट करता है कि मैं इस कार्य को भविष्य में नहीं करूंगा। क्षमायाचना करके देव पीछे लौट गया। कामदेव द्वारा प्रतिमा की पूर्तिमूलम्—तए णं से कामदेवे समणोवासए “निरुवसग्गं" इइ कटु पडिमं पारेइ / / 113 // छाया ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकः ‘निरुपसर्गम्' इति कृत्वा प्रतिमां पारयति / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए—उस कामदेव श्रमणोपासक ने, निरुवसग्गं इइ कट्ट—अब उपसर्ग नहीं रहा यह समझकर, पडिमं पारेइ–प्रतिमा-अभिग्रह का पारण किया / श्री उपासक दश / 225 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन