________________ 7. सहस्राक्षः-इसका शब्दार्थ है हजार आंखों वाला। इन्द्र के पांच सौ मंत्री होते हैं और उनकी हजार आंखें होती हैं, अतः वह हजार आंखों वाला माना जाता है। वैदिक साहित्य में शत् शब्द का अर्थ है असंख्य और सहस्र का अर्थ है अनन्त / इन्द्र स्वर्ग का राजा है और उसकी दृष्टि चारों ओर फैली रहती है। अतः वह सहस्राक्ष माना जाता है। 8. मघवान्—मघ शब्द का अर्थ है मेघ या बादल, उन पर नियन्त्रण करने वाला मघवान् कहलाता है। 6. पाकशासनः-पाक का अर्थ है बलवान् शत्रु, उसका शासन अर्थात् दमन करने वाला पाकशासन कहलाता है। 10. दक्षिणार्धाधिपतिः–लोक का आधा भाग दक्षिण है और आधा उत्तर। दक्षिण भाग के अधिपति को दक्षिणार्द्ध अधिपति कहा जाता है / 11. ऐरावतवाहनः इन्द्र के हाथी का नाम ऐरावत है। इस सवारी के कारण वह ऐरावतवाहन कहा जाता है। 12. सुरेन्द्रः-सुर अर्थात् देवताओं का राजा। सूत्र में देव सभा का वर्णन करते हुए 80 हजार सामानिक देवों का निर्देश आया है। इसका अर्थ है वे देव जो शासन का अधिकार न होने पर भी इन्द्र के समान वैभवशाली हैं। इन्द्र की सभा में उनके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के लब्ध-प्रतिष्ठ देवी-देवता विद्यमान होते हैं। उनका संग्रह 'यावत्' शब्द से किया गया है। अन्यत्र उनका वर्णन नीचे लिखे अनुसार मिलता है___ "तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं चउण्डं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, त्ति' तत्र त्रयस्त्रिंशाः-पूज्या महत्तरकल्पाः, चत्वारो लोकपालाः पूर्वादिदिगधिपतयः सोमयमवरुणवैश्रवणाख्याः, अष्टौ अग्रमहिष्यः-प्रधाना भार्याः, तत्परिवारः प्रत्येकं पञ्चसहस्राणि, सर्वमीलने चत्वारिंशत्सहस्राणि, तिस्रः परिषदोऽभ्यन्तरामध्यमाबाह्या च, सप्तानीकानि-पदातिगजाश्वरथवृषभभेदात्पञ्च साङ्ग्रामिकाणि, गन्धर्वानीकं नाट्यानीकं चेति सप्त, अनीकाधिपतयश्च सप्तं वै– प्रधानः पत्तिः प्रधानो गज एवमन्येऽपि, आत्मरक्षा–अङ्गरक्षास्तेषां चतस्रः सहस्राणां चतुरशीत्यः / आख्याति–सामान्यतो, भाषते विशेषतः, एतदेव प्रज्ञापयति प्ररूपयतीति पदद्वयेन क्रमेणोच्यत इति / " उपरोक्त पाठ में इन्द्र के परिवार सम्बन्धी देवी-देवताओं का वर्णन है। वह इस प्रकार है 1. त्रायस्त्रिंश–इसका अर्थ है 33 देवताओं का समूह जिन्हें इन्द्र सन्मान की दृष्टि से देखता है और पूज्य मानता है। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 224 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन