________________ इयमेतद्रूपा प्रतिपत्तिर्लब्धा, प्राप्ता, अभिसमन्वागता | एवं खलु देवानुप्रिय! शक्रो देवेन्द्रो देवराजो यावत् शाक्रे सिंहासने चतुरशीतेः सामानिकसाहस्रीणां यावदन्येषां च बहूनां देवानां देवीनां च मध्यगत एवमाख्याति ४-"एवं खलु देवानुप्रियाः! जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे चम्पायां नगर्यां कामदेवः श्रमणोपासकः पौषधशालायां पौषधिको ब्रह्मचारी यावत् दर्भसंस्तारोपगतः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽऽन्तिकी धर्मप्रज्ञप्तिमुपसंपद्यविहरति / नो खलु स शक्यः केनापि देवेन वा दानवेन वा गन्धर्वेण वा नैर्ग्रन्थ्यात्प्रवचनाच्चालयितुं वा क्षोभयितुं वा विपरिणामयितुं वा / ततः खलु अहं शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्यैतमर्थमश्रद्दधानः 3 इह हव्यमागतः, तदहो खलु देवानुप्रियाः! ऋद्धि 6 लब्धा 3 तद् दृष्टा खलु देवानुप्रियाः! ऋद्धिर्यावदभिसमन्वागता, तत् क्षामयामि देवानुप्रियाः! क्षम्यन्तां मम देवानुप्रियाः! क्षन्तुमर्हन्ति देवानुप्रियाः! न भूयः करणतया” इति कृत्वा पादपतितः प्राञ्जलिपुट एतदर्थं भूयो भूयः क्षमापयति क्षमापयित्वा यामेवदिशं प्रादुर्भूतस्तामेवदिशं प्रतिगतः। शब्दार्थ (उस देव ने) हारविराइयवच्छं हारों से विभूषित वक्षस्थल वाला, जाव-यावत्, दसदिसाओ उज्जोवेमाणं-दश दिशाओं को प्रकाशित करने वाला, पासाईयं—मन को प्रसन्न करने वाला, दरिसणिज्जं—दर्शनीय, अभिरूवं—अभिरूप, पडिरूवं–प्रतिरूप, दिव्वं देवरूवं-दिव्य देव रूप, विउव्वइ–धारण किया, विउव्वित्ता धारण करके, कामदेवस्स समणोवासयस्स—कामदेव श्रमणोपासक की, पोसहसालं अणुप्पविसइ—पौषधशाला में प्रवेश किया, अणुप्पविसित्ता—प्रवेश करके, अंतलिक्ख पडिवन्ने—आकाश में अवस्थित होकर संखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए क्षुद्र घंटिकाओं से मण्डित पञ्चवर्ण के वस्त्र धारण किए हुए, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रमणोपासक को, एवं वयासी–इस प्रकार कहा-हं भो कामदेवा समणोवासया! हे कामदेव श्रमणोपासक!, धन्नेसि णं तुमं देवाणुप्पिया! हे देवांनुप्रिय! तुम धन्य हो, संपुण्णे-तुम पुण्यशील हो, कयत्थे—कृतार्थ हो, कयलक्खणे–कृत लक्षण अर्थात् शुभ लक्षणों वाले हो, सुलद्धेणं तव देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले हे देवानुप्रिय! तुम्हारे लिए मनुष्य जन्म और जीवन का फल सुलभ है, जस्स णं-क्योंकि, तव णिग्गंथे पावयणे-तुम्हें निर्ग्रन्थ प्रवचन में, इमेयारूवा पडिवत्ती—यह इस प्रकार की प्रतिपत्ति विश्वास, लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया—उपलब्ध हुई–प्राप्त हुई और जीवन में उत्तर गई! एवं खलु देवाणुप्पिया! इस प्रकार हे देवानुप्रिय!, सक्के देविंदे देवराया—शक्र देवेन्द्र देवराज ने, जाव यावत्, सक्कंसि सीहासणंसि—शक्रासन से, चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं-चौरासी हजार सामानिक, जाव—यावत्, अन्नेसिं च बहूणं-अन्य बहुत से, देवाण य देवीण य मज्झगए—देवों और देवियों के मध्य में, एवमाइक्खइ-इस प्रकार कहा—एवं खलु देवाणुप्पिया! इस प्रकार हे देवो!, जंबुद्दीवे दीवे—जम्बूद्वीप में, भारहे वासे—भारत वर्ष की, चम्पाए नयरीए-चम्पा नगरी में, कामदेवे समणोवासए—कामदेव श्रमणोपासक, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 220 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन /