________________ शब्दार्थ—जब सर्प रूपधारी देव ने कामदेव श्रावक को निर्भय यावत् ध्यान में स्थिर देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर, सरसर करता हुआ उसके शरीर पर चढ़ गया, उसकी ग्रीवा को लपेट लिया। विषैली तीक्ष्ण दाढ़ों से उसके वक्षस्थल पर डंक मारा | मूलम्–तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ // 110 // छाया ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तामुज्ज्वलां यावदध्यास्ते / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए—उस कामदेव श्रमणोपासक ने; तं उज्जलं जाव अहियासेइ—उस तीव्र वेदना को सहन किया। भावार्थ कामदेव श्रावक उस असह्य वेदना को शान्तिपूर्वक सहन करता रहा। __देव का पराजित होकर निजी रूप धारण करनामूलम् तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाब पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ // 111 // ___ छाया-ततः खलु स देवः सर्परूपः कामदेवं श्रमणोपासकमभीतं यावत्पश्यति, दृष्ट्वा यदा नो शक्नोति कामदेवं श्रमणोपासकं नैर्ग्रन्थ्यात्प्रवचनाच्चालयितुं वा क्षोभयितुं वा विपरिणामयितुं वा तदा शान्तः, तान्तः, परितान्तः शनैः शनैः प्रत्यवष्वष्कति, प्रत्यवष्वष्क्य पौषधशालातः प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य दिव्यं सर्परूपं विप्रजहाति, विप्रजहायैकं महद्दिव्यं देवरूपं विंकुरुते / शब्दार्थ तए णं इस पर भी, से देवे सप्परूवे—उस सर्प रूपधारी देव ने, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रमणोपासक को, अभीयं जाव पासइ–निर्भय यावत् (ध्यान में स्थिर देखा), पासित्ता देखकर, जाहे नो संचाएइ जब समर्थ न हो सका, कामदेवं समणोवासयं कामदेव श्रमणोपासक को, निग्गंथाओ पावयणाओ-निर्ग्रन्थ प्रवचन से, चालित्तए वा विचलित करने, खोभित्तए वा क्षुब्ध करने, विपरिणामित्तए वा परिवर्तित करने में, ताहे तब, संते-तंते परितन्ते श्रान्त, ग्लान और अत्यन्त दुखी होकर, सणियं सणियं पच्चोसक्कइ—धीरे धीरे लौटा, पच्चोसक्कित्ता–लौटकर पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ—पोषधशाला से निकला, पडिणिक्खमित्तानिकलकर, दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ-दिव्य सर्प का रूप त्याग दिया, विप्पजहित्ता त्यागकर, एगं महं दिव्वं—एक महान् दिव्य, देवरूवं विउव्वइ–देव रूप को धारण किया। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 218 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन