________________ भावार्थ हाथीरूप धारी देवता ने कामदेव श्रावक को निर्भय यावत् ध्यान से अविचलित देखा तो दूसरी और तीसरी बार उसने कामदेव श्रावक से फिर कहा परन्तु वह पूर्ववत् ध्यान में स्थिर रहा / मूलम् तए णं से देवे हत्थि-वे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, 2 ता आसुरुते 4, कामदेवं समणोवासयं सोंडाए गिण्हेइ, 2 ता उड्ढे वेहासं उविहइ 2 ता तिक्खेहिं दंत-मुसलेहिं पडिच्छइ, 2 ता अहे धरणि-तलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ // 105 // छाया ततः खलु स देवो हस्तिरूपः कामदेवं श्रमणोपासकमभीतं यावद्विहरमाणं पश्यति, दृष्ट्वा आशुरक्तः 4 कामदेवं श्रमणोपासकं शुण्डया गृह्णाति, गृहीत्वा ऊर्ध्वं विहायसि समुद्वहति, उदुह्य तीक्ष्णैर्दन्तमुसलैः प्रतीच्छति, प्रतिष्याधो धरणितले त्रिःकृत्वः पादयोर्लोलयति। .. शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से देवे हत्थिरूवे हस्तीरूप धारी उस देव. ने, कामदेवं समणोवासयं कामदेव श्रमणोपासक को, अभीयं जाव विहरमाणं निर्भय यावत् (ध्यानस्थ) विचरते, पासइ देखा, पासित्ता–देखकर, आसुरुत्ते ४–अत्यन्त रुष्ट लाल पीला होकर, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रमणोपासक को, सोंडाए गिण्हेइ—सूण्ड से पकड़ा, गिणिहत्ता—पकड़कर, उड्ढे वेहासं उव्विहइ—ऊपर आकाश में उछाल दिया, उविहित्ता—उछाल कर, तिक्खेहिं दंतमुसलेहि पडिच्छइ तीक्ष्ण मूसल के समान दाँतों पर झेला (धारण) किया, पडिच्छित्ता झेलकर, अहे धरणितलंसि नीचे पृथ्वी तल पर, तिक्खुत्तो-तीन बार, पाएसु लोलेइ-पैरों से रौंदा।। ___ भावार्थ फिर भी हाथी रूप धारी देव ने कामदेव श्रावक को निर्भय यावत्, ध्याननिष्ठ देखा। और लाल-पीला होकर उसे सूण्ड से पकड़ा और ऊपर आकाश में उछालकर तीखे दाँतों पर झेला फिर नीचे पृथ्वी पर पटककर पैरों से रौंदा / मूलम् तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ // 106 // छाया–ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तामुज्ज्वलां यावदध्यास्ते / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए वह कामदेव श्रमणोपासक, तं उज्जलं जाव अहियासेइ-असह्य वेदना को सहन करता है। भावार्थ कामदेव श्रावक उस असह्य वेदना को शान्तिपूर्वक सहन करता रहा। पिशाच द्वारा सर्प रूप धारणमूलम् तए णं से देवे हत्थि-रूवे कामदेवं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ जाव सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, 2 त्ता पोसह-सालाओ पडिणिक्खमइ, 2 त्ता दिव्वं हत्थि-रूवं विप्पजहइ, 2 ता एगं महं दिव्वं सप्प-रूवं विउव्वइ, उग्ग-विसं चंड-विसं घोर-विसं श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 214 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन .