________________ उठा लूँगा, पडिच्छित्ता—उठाकर, अहे धरणितलंसि—नीचे पृथ्वी तल पर, तिक्खुत्तो-तीन बार, पाएसु लोलेमि-पैरों से कुचलूंगा, जहा णं तुमं जिससे तू, अट्टदुहट्टवसट्टे—अत्यन्त दुखी तथा चिन्ता मग्न होकर, अकाले चेव असमय में ही, जीवियाओ ववरोविज्जसि—जीवन से रहित कर दिया जाएगा। भावार्थवह हाथी मदोन्मत्त था। मेघ के समान गर्जना कर रहा था। उसका वेग मन और पवन से भी तीव्र था। देवता ने ऐसे दिव्य हाथी के रूप की विक्रिया की और पौषधशाला में कामदेव श्रावक के पास पहुँचा और बोला—अरे कामदेव श्रावक! यदि तू शील-व्रत आदि का भङ्ग न करेगा तो मैं तुझे अपनी सूण्ड से पकड़कर पौषधशाला के बाहर ले जाऊंगा। आकाश में उछालूँगा फिर अपने तीक्ष्ण मूसल समान दान्तों पर उठा लूँगा। तीन बार नीचे भूमि तल पर पटककर पैरों से कुचलूंगा, जिसके कारण तू अत्यन्त दुख से आर्त होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठेगा। - मूलम् तए णं.से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं हत्थि-रूवेणं एवं वुत्ते समाणे, अभीए जाव विहरइ // 103 // ___ छाया–ततः . खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तेन देवेन हस्तिरूपेणैवमुक्तः सन्नभीतो यावद्विहरति। शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर से कामदेवे समणोवासए—वह कामदेव श्रमणोपासक, तेणं देवेणं हत्थिरूवेणं उस हस्तीरूप धारी देव द्वारा, एवं वुत्ते समाणे इस प्रकार कहे जाने पर भी, अभीए जाव विहरइ–भयभीत न हुआ और यावत् ध्यान में स्थिर रहा। भावार्थ हाथी रूपधारी देवता के ऐसा कहने पर भी श्रावक कामदेव भयभीत न हुआ और यावत् ध्यान में स्थिर रहा। मूलम् तए णं से देवे हत्थि-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ 2 ता दोच्वंपि तच्चपि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी—“हं भो ! कामदेवा ! तहेव जाव सो वि विहरइ // 104 // छाया ततः खलु स देवो हस्तिरूपः कामदेवं श्रमणोपासकमभीतं यावद्विहरमाणं पश्यति, दृष्ट्वा द्वितीयमपि तृतीयमपि कामदेवं श्रमणोपासकमेवमवादीत्—हं भोः ! कामदेव ! तथैव यावत्स विहरति / . शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से देवे हत्थिरूवे—उस हस्तीरूप धारी देव ने, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रमणोपासक को, अभीयं जाव विहरमाणं पासइ–भयरहित यावत् ध्यान मग्न देखा, पासित्ता देखकर, दोच्वंपि तच्चंपि दूसरी और तीसरी बार, कामदेवं समणोवासयं कामदेव श्रमणोपासक को, एवं वयासी—इस प्रकार कहा, हं भो ! कामदेवा ! अरे कामदेव !, तहेव जाव सोवि विहरड उसी प्रकार यावत वह कामदेव भी विचरता रहा। / श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 213 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन