________________ अध्ययनों से यह स्पष्ट हो जाता है। चुलनीपिता को ऐसा लगता है जैसे उसके पुत्र मार डाले गए हैं और उन्हें गरम तेल के कड़ाहों में पकाया गया। किन्तु जब वह पिशाच को पकड़ने के लिए उठा और कोलाहल सुनकर माता सामने आई तो उसने बताया कि तेरे सभी पुत्र सुख से सो रहे हैं। उन्हें किसी ने नहीं मारा। इसी प्रकार कामदेव को भी विचलित करने के लिए भयंकर दृश्य उपस्थित किए गए। वे सच्ची घटना नहीं थे। कामदेव का शांत रहनामूलम् तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ जाव अहियासेइ // 100 // छाया ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तामुज्ज्वलां दुरध्यासां वेदनां सम्यक् सहते यावदध्यास्ते। शब्दार्थ-तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए—वह कामदेव श्रमणोपासक, तं—उस, उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं तीव्र यावत् दुःसह वेदना को, सम्मं सहइ ज़ाव अहियासेइ सम्यक् प्रकार से सहन करता हुआ, यावत् धर्मध्यान में स्थित रहा / भावार्थ कामदेव श्रावक ने उस तीव्र और असह्य वेदना को शान्त चित्त होकर सहन किया और . वह धर्म ध्यान में स्थिर रहा। ___ पिशाच द्वारा हाथी का रूप धारण करना— , मूलम् तए णं से देवे पिसाय-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता, पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसाय-रूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थि-रूवं विउव्वइ, सत्तंग-पइट्ठियं सम्म संठियं सुजायं, पुरओ उदग्गं, पिट्ठओ वराह, अया-कुच्छिं अलंब-कुच्छिं पलंब-लंबोदराधर-करं अब्भुग्गय-मउल-मल्लिया-विमल-धवल-दंतं कंचणकोसी-पविठ्ठ-दंतं, आणामि-यचावललिय-संवेल्लियग्ग-सोण्डं कुम्मपडिपुण्ण-चलणं वीसइ-नक्खं अल्लीण-पमाण- जुत्त-पुच्छं // 101 // छाया ततः खलु स देवः पिशाचरूपः कामदेवं श्रमणोपासकमभीतं यावद्विहरमाणं पश्यति, दृष्टवा यदा नो शक्नोति कामदेवं श्रमणोपासकं नैर्ग्रन्थ्याप्रवचनाच्चालयितुं वा क्षोभयितुं वा | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 210 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन /