________________ कामदेव का अविचलित रहनामूलम् तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे, अभीए जांव.धम्म-ज्झाणोवगए विहरइ // 68 // छाया ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तेन देवेन द्वितीयमपि तृतीयमप्येवमुक्तः सन् अभीतो यावद्धर्मध्यानोपगतो विहरति / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए वह कामदेव श्रमणोपासक, तेणं देवेणं—उस देव द्वारा, दोच्चंपि तच्चंपि—दूसरी बार तीसरी बार, एवं वुत्ते समाणे—इस प्रकार कहे जाने पर भी, अभीए -भय रहित, जाव—यावत्, धम्मज्झाणोवगए विहरइ–धर्म ध्यान में स्थिर रहा / भावार्थ देव के द्वारा दूसरी और तीसरी बार कहे जाने पर भी कामदेव निर्भय होकर यावत् धर्म ध्यान में स्थिर रहा। ___ पिशाच का हिंसक आक्रमण-- ____ मूलम् तए णं से देवे पिसाय-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता आसुरत्ते 5 ति-वलियं भिउडिं निडाले साहट्ट कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल जाव असिणा खंडाखंडिं करेइ.॥६६॥ - छाया–ततः खलु स देवः पिशाचरूपः कामदेवं श्रमणोपासकमभीतं यावद्विहरमाणं पश्यति, दृष्ट्वा, आशुरक्तः 5 त्रिवलिकां भ्रु कुटिं ललाटे संहृत्य कामदेवं श्रमणोपासकं नीलोत्पल यावदसिना खंडाखंडिं करोति। शब्दार्थ तए णं—इस पर भी, से देवे पिसायरूवे उस पिशाचरूप धारी देव ने, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रंमणोपासक को, अभीयं जाव विहरमाणं भय रहित धर्म-ध्यान में स्थित, पासइ देखा, पासित्ता- देखकर, आसुरत्ते ५-अत्यन्त क्रुद्ध होकर, तिवलियं भिउडिं निडाले साहटु मस्तक पर तीन भ्रूकुटियाँ चढ़ाकर, कामदेवं समणोवासयं—कामदेव श्रमणोपासक को, नीलुप्पल जाव असिणा–नील कमल के समान तलवार से, खंडाखंडिं करेइ-टुकड़े-टुकड़े कर दिया। भावार्थ पिशाचरूपी देव ने फिर भी देखा कि कामदेव श्रमणोपासक निर्भय यावत् धर्मध्यान में स्थिर है। यह देखकर वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और ललाट पर तीन भ्रूकुटियाँ चढ़ाकर नील कमल के समान खड्ग से कामदेव श्रावक पर प्रहार करने लगा। . टीका—खंडाखंडिं करेइ यहाँ एक प्रश्न होता है कि टुकड़े-टुकड़े करने पर भी कामदेव जीवित कैसे रहा। इसका समाधान यह है कि यह देवता द्वारा की गई विकुर्वणा थी। कामदेव को यह लग रहा था कि मेरा शरीर काटा जा रहा है. और वह सारी पीडा धैर्यपर्वक सहन कर रहा थ / अगले श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 206 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन