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________________ अप्पत्थिय-पत्थिया—(अप्रार्थित प्राथकः) 'अप्रार्थित' का अर्थ है—मृत्यु, जिसे कोई नहीं चाहता। समस्त शब्द का अर्थ है, अरे! मौत को चाहने वाले! यह शब्द संस्कृत साहित्य में बहुत अधिक मिलता है। हीणपुण्णचाउद्दसिया (हीनपुण्यचातुर्दशीक!) चतुर्दशी को पुण्य तिथि माना जाता है किन्तु यदि उसका क्षय हो और उस दिन किसी का जन्म हो तो वह अशुभ माना जाता है। यहाँ वृत्तिकार के नीचे लिखे शब्द हैं—“हीणपुण्णाचाउद्दसिया, त्ति हीना सम्पूर्णा पुण्या चतुर्दशी तिथिर्जन्मकाले यस्य स हीनपुण्यचतुर्दशीकः, तदामन्त्रणं, तथा नूतनवृत्तिः—“हीनेति-हीना अपूर्णा या पुण्या पावनी चतुर्दशी (तिथिः) सा हीनपुण्यचतुर्दशी, तस्यां जातो हीन-पुण्य चातुर्दशीकस्तत्सम्बोधने, पुण्य चतुर्दश्यामनुत्पन्नत्वेन भाग्यहीनः' तथा “जं-सीलाई-वयाई-वेरमणाइं-पच्चखाणाइं-पोसहोववासाइं" यह पद दिए हैं—इसका अर्थ वृत्तिकार ने ऐसे दिया है—शीलानि–अणुव्रतानि, व्रतानि-दिग्वतादीनि, विरमणानि-रागादि विरतयः, प्रत्याख्यानानि नमस्कारसहि-तादीनि, पौषधोपवासान्–आहारादिभेदेन चतुर्विधान् / " यहाँ चार प्रकार के अनुष्ठान बताए गए हैं१. शील–पांच अणुव्रत। 2. विरमण-दिशाव्रत आदि तीन गुणव्रत / 3. प्रत्याख्यान-नवकारसी, पोरिंसी आदि / 4. पौषधोपवास–धर्मस्थानादि एकान्त स्थान में सावध व्यापार से निवृत्त होकर उपवास-रूप तप; साधना का अनुष्ठान करना। ___कामदेव की दृढ़तामूलम् तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं पिसाय-रूवेणं एवं वुत्ते समाणे, अभीए, अत्तत्थे, अण्णुव्विग्गे, अक्खुभिए, अचलिए, असंभंते, तुसिणीए धम्म-ज्झाणोवगए विहरइ॥६६॥ छाया–ततः खलु स कामदेवः श्रमणोपासकस्तेन देवेन पिशाचरूपेणैवमुक्तः सन् अभीतोऽत्रस्तोऽनुद्विग्नोऽक्षुब्धोऽचलितोऽसम्भ्रान्तस्तूष्णीको धर्मध्यानोपगतो विहरति / . शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से कामदेवे समणोवासए वह कामदेव श्रमणोपासक, तेणं देवेणं पिसाय रूवेणं-पिशाच रूप धारी उस देव के द्वारा, एवं वुत्ते-समाणे—इस तरह कहे जाने पर भी, अभीए—भयरहित, अत्तत्थे–त्रास रहित, अण्णुव्विग्गे—उद्वेग रहित, अक्खुभिए क्षोभ रहित, अचलिए अचलित, असंभंते—असम्भ्रान्त, तुसिणीए—और शान्त, धम्मज्झाणोवगए विहरइ रहकर श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 207 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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