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________________ अशुभ लक्षणों वाला है। अशुभ चतुर्दशी को पैदा हुआ है। लज्जा, लक्ष्मी, धैर्य तथा कीर्ति रहित है। धर्म, स्वर्ग, तथा मोक्ष की कामना करता है। धर्म तथा स्वर्ग की आकांक्षा करता है, धर्म पिपासु है। हे देवानुप्रिय ! तुझे अपने शील, व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से विचलित होना, क्षुब्ध होना, उनको खंडित करना, भङ्ग करना, त्याग और परित्याग करना नहीं कल्पता। किन्तु यदि तू आज शील आदि यावत् पौषधोपवासों को नहीं छोड़ेगा, भङ्ग नहीं करेगा तो इस नील-कमल आदि के समान श्याम रंग की तीखी तलवार से तेरे टुकड़े-टुकड़े कर डालूँगा, जिससे तू दुख भोगता हुआ, अकाल में ही जीवन से पृथक् हो जाएगा। टीका प्रस्तुत सूत्र में प्रारम्भ की कुछ पंक्तियाँ पिशाच की वेश-भूषा का वर्णन करती हैं। तत्पश्चात् कामदेव के पास उसके पहुँचने और उसे भयभीत करने का वर्णन है। पिशाच ने गिरगिट तथा चूहों की मालाएँ पहन रखी थीं। कर्णाभूषण के स्थान पर नेवले लटक रहे थे और उत्तरीय के स्थान पर सांप / जहाँ तक सांपों का प्रश्न है उन्हें गले में पहनने का वर्णन अन्यत्र भी मिलता है। पौराणिक देवता साँपों को आभूषण के रूप में धारण किए रहते थे तथा हाथी की खाल पहनते थे। उनके अनुचर अन्य भयंकर जंतुओं को भी धारण करते थे, जिनका वर्णन पिशाच के प्रस्तुत वर्णन से मिलता है। लडहमडहजाणुए इस पर वृत्तिकार के नीचे लिखे शब्द हैं—लहडमहड जाणुए त्ति इह प्रस्तावे लडह शब्देन गन्त्र्याः पश्चाद्भागवर्तिं तदुत्तराङ्गरक्षणार्थं यत्काष्टं तदुच्यते, तच्च गन्त्र्यां श्लथबन्धनं भवति, एवं च श्लथसन्धि बन्धनत्वाल्लडह इव लडहे मडहे च स्थूलत्वाल्पदीर्घत्वाभ्यां जानुनी यस्य तत्तथा" यहाँ लडह का अर्थ है—लकड़ी का वह लट्ठा जो बैलगाड़ी का सन्तुलन रखने के लिए उसके पीछे लटकता रहता है। वह मोटा तथा शिथिल होता है। पिशाच की जंघाएँ भी उसी प्रकार मोटी और ढीली-ढाली लड़-खड़ा रही थीं। 'सप्प कय वेगच्छे' - इसकी वृत्ति निम्नलिखित है—सर्पाभ्यां कृतं वैकक्षम्-उत्तरासङ्गो येन तत्तथा, पाठान्तरेण 'मूसगकयधुंभलए बिच्छुय कयवेगच्छे सप्पकय-जण्णोवइए' तत्र भुंभलये त्ति-शेखरः 'विच्छुय' त्ति-वृश्चिकाः, यज्ञोपवीतं-ब्राह्मणकण्ठसूत्रम्, तथा 'अभिन्नमुहनयणनक्खवरवग्धचित्तकत्तिनियंसणे' अभिन्नाः-अविशीर्णा मुखनयननखा यस्यां सा तथा सा चासौ वरव्याघ्रस्य चित्रा-कर्बुरा-कृत्तिश्च-चर्मेति कर्मधारयः, सा निवसनं-परिधानं यस्य तत्तथा, 'सरसरुहिरमंसावलित्तगत्ते' सरसाभ्यां रुधिरमांसाभ्यामवलिप्तं गात्रं यस्य तत्तथा।" वैकक्ष्य का अर्थ है वह दुपट्टा जो बगलों के नीचे से ले जाकर कन्धों पर डाला जाता है, पिशाच ने साँप को इस प्रकार पहन रखा था। यहाँ पाठान्तर में कुछ और बातें भी बताई गई हैं। उसने चूहों का मुकुट, विच्छुओं की अक्षमाला तथा साँप का यज्ञोपवीत बना रखा था। चीते की खाल को, जिससे नाखून, आँखें और मुंह अलग नहीं हुए थे, वस्त्र के समान पहन रखा था। ताजे रुधिर और मांस से शरीर को लीप रखा था। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 206 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन /
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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