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________________ बीयं अज्झयण द्वितीय अध्ययन द्वितीय अध्ययन के विषय में प्रश्न— मूलम् जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते दोच्चस्स णं, भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते // 61 // छाया—यदि खलु भदन्त! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत् सम्प्राप्तेन सप्तमस्याङ्गस्योपासकदशानां प्रथमाध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः, द्वितीयस्य खलु भदन्त! अध्ययनस्य कोऽर्थः प्रज्ञप्तः? . . शब्दार्थ जइ णं यदि, भंते!—भगवन्!, समणेणं भगवया महावीरेणं श्रमण भगवान् महावीर ने, जाव—यावत्, संपत्तेणं जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं—उपासकदशा नामक सातवें अंग के, पढमस्स अज्झयणस्स—प्रथम अध्ययन का, अयमढें—यह अर्थ, पण्णत्ते—प्रतिपादन किया है तो, भंते! हे भगवन्!, दोच्चस्स णं अज्झयणस्स–द्वितीय अध्ययन का, के अढें—क्या अर्थ, पण्णत्ते—प्रतिपादन किया है? भावार्थ-आर्य जम्बूस्वामी ने पूछा-भगवन्! यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने यदि सातवें अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ बताया है? टीका प्रस्तुत सूत्र द्वितीय अध्ययन की उत्थानिका है जिसमें कामदेव श्रावक का वर्णन है। आर्य जम्बूस्वामी प्रथम आनन्द विषयक अध्ययन समाप्त होने पर द्वितीय अध्ययन के विषय में पूछते हैं। बीयं कामदेवज्झयणं कामदेव का जीवनवृत्त और पौषधशाला गमन मूलम् एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नामं नयरी होत्था / श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 167 / कामदेव उपासक, द्वितीय अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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