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________________ एषणीय, अनेषणीय की आलोचना के पश्चात् उन्होंने भिक्षा में लाया हुआ भोजन एवं पानी भगवान् को दिखाया। जैन मुनियों की मर्यादा में यह भी आवश्यक माना गया है कि वह भिक्षा में भोजन-वस्त्र आदि जो कुछ लाए सर्वप्रथम गुरु को दिखाए और उनके आदेशानुसार सेवन करे, यह मर्यादा मुनि को अनेक दोषों से बचाती है। ___ तदनन्तर गौतम स्वामी ने सारा वृत्तान्त भगवान् को सुनाया और पूछा कि आलोचना एवं प्रायश्चित किसे करना चाहिए? भगवान् ने उत्तर दिया-"गौतम! तुम ही आलोचना एवं प्रायश्चित्त करो, इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इस बात के लिए आनन्द से क्षमा याचना करो। इससे ज्ञात होता है कि महावीर के शासन में दोष किसी का हो उसे क्षमा नहीं किया जाता था। गौतम महावीर के प्रधान शिष्य थे। संघ में उनका सर्वोच्च स्थान था, फिर भी भगवान् ने उनसे कहा, 'आनन्द से क्षमा याचना करो।' गौतम द्वारा क्षमा याचनामूलम् तए णं से भगवं गोयमे, समणस्स भगवओ महावीरस्स "तह" त्ति एयमझें विणएणं पडिसुणेइ, 2 ता तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवज्जइ, आणंदं च समणोवासयं एयमझें खामेइ // 87 // तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवय विहारं विहरइ // 98 // छाया-ततः खलु स भगवान् गौतमः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'तथेति' एतमर्थं विनयेन प्रतिशृणोति, प्रतिश्रुत्य तस्य स्थानस्याऽऽलोचयति, यावप्रतिपद्यते, आनन्दं च श्रमणोपासकमेतदर्थं क्षमापयति। ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरोऽन्यदा कदाचिद् बहिर्जनपदविहारं विहरति / शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से भगवं गोयमे भगवान् गौतम ने, समणस्स भगवओ महावीरस्स–श्रमण भगवान् महावीर के, एयमढें—उक्त. कथन को, तहत्ति तथेति कहकर, विणएणं विनयपूर्वक, पडिसुणेइ स्वीकार किया, पडिसुणित्ता स्वीकार करके, तस्स ठाणस्स—उस स्थान की, आलोएइ—आलोचना की, जाव यावत्, पडिवज्जइ–तपःकर्म स्वीकार किया, आणंदं च समणोवासयं—और आनन्द श्रमणोपासक से, एयमलैं—इस बात के लिए, खामेइ–क्षमा याचना की। तए णं तत्पश्चात्, समणे भगवं महावीरे—श्रमण भगवान् महावीर, अन्नया कयाइ–अन्यदा कदाचित्, बहिया जणवयविहारं दूसरे जनपदों में, विहरइ–विचरने लगे। भावार्थ गौतम ने भगवान् महावीर के उक्त कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया और उस श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 162 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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