________________ शास्त्रों का स्वाध्याय किया, दूसरे में ध्यान और तीसरे में मुखवस्त्रिका, पात्र एवं वस्त्रों की प्रतिलेखना की, तदनन्तर भगवान महावीर के पास पहुंचे। वन्दना नमस्कार के पश्चात् भिक्षार्थ वाणिज्यग्राम में जाने की अनुमति मांगी। 'पढमाए पोरिसीए-प्रथमायां पौरुष्यां' पौरुषी शब्द का अर्थ पहर है, इसका यौगिक अर्थ है पुरुष की छाया के आधार पर निश्चित किया गया काल परिमाण / हमारी छाया प्रातःकाल लम्बी होती है और घटते-घटते मध्याह्न में संक्षिप्त हो जाती है, दोपहर के बाद फिर बढ़ने लगती है। इसी आधार पर जैनकाल गणना में दिन को चार पोरिसिओं में विभक्त किया है। आजकल भी जैन साधु एवं श्रावकों द्वारा काल मर्यादा स्थिर करने की परम्परा विद्यमान है। जैन शास्त्रों में पोरिसी नाम का प्रत्याख्यान भी है, जिसमें व्यक्ति सूर्योदय के पश्चात् एक प्रहर या दो प्रहर तक अन्न एवं जल ग्रहण न करने का निश्चय करता है। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय तथा द्वितीय पहर में ध्यान / इसी प्रकार भगवान् गौतम स्वामी दो प्रहर तक आत्मचिन्तन में लगे रहे। तृतीय प्रहर प्रारम्भ होने पर अपना व्रत पूरा किया और प्रतिलेखना आदि दैनिक कार्यों में लग गए। साधारणतया साधुओं के लिए यह विधान है कि प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय होने पर और सायं सूर्यास्त से पहले प्रतिलेखन करनी चाहिए, किन्तु गौतम स्वामी भोजन आदि का परित्याग करके जब तक एकान्त आत्म चिन्तन में लीन रहे तब तक अन्य दैनिक कार्यों को स्थगित कर दिया। साधारणतया भिक्षा का समय पहला प्रहर बीतने पर होता है, किन्तु गौतम स्वामी ने छ? भक्त कर रखा था, उसकी मर्यादा के अनुसार चौथे दिन भी दो प्रहर से पहले भोजन नहीं करना चाहिए इसी लिए वे तीसरे प्रहर भिक्षा के लिए गए। उच्च-नीच भिक्षा के लिए घूमते समय गौतम स्वामी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि जिस घर में वे जा रहे हैं वे सम्पन्न हैं या दरिद्र, बिना भेदभाव के वे प्रत्येक घर में घूमने लगे। सामुदानीकी भिक्षा के लिए घूमते समय कई प्रकार की चर्याओं का विधान है। उदाहरण के रूप में गौमूत्रिका नाम की एक चर्या है। इसमें साधु गली में घूमता है। एक ओर के एक घर में भिक्षा लेकर दूसरी ओर चला जाता है और फिर उसी ओर आकर दूसरे घर से भिक्षा लेता है। सामुदानीकी चर्या में एक ही किनारे के बीच में बिना किसी घर को छोड़े भिक्षा लेता चला जाता है। गौतम स्वामी ने सामुदानीकी भिक्षा की। ___ अतुरियं इत्यादि, दो दिन के उपवास का पारणा होने पर भी गौतम स्वामी ने सारे दैनिक कृत्य स्थिरता एवं धैर्यपूर्वक किए, उनमें न किसी प्रकार की त्वरा थी, न चपलता और न सम्भ्रम अर्थात् घबराहट / साधक के लिए यह महत्वपूर्ण बात है कि वह अपनी साधना काल में तथा उसके पश्चात् भी धैर्य एवं दृढ़ता से काम ले / प्रतिलेखना आदि करके गौतम स्वामी भगवान् महावीर के पास गए। वन्दना नमस्कार किया श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 180 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन